भारतीय दर्शन का इतिहास भाग 5 | Bharatiya Darshan Ka Itihas Bhag - 5

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Bhratiya Darshan Ka Itihas Bhag - 5 by डॉ. एस. एन. दासगुप्ता - Dr. S. N. Dasgupta

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डॉ. एस. एन. दासगुप्ता - Dr. S. N. Dasgupta

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सुश्री पी. मिश्रा - Sushri P. Mishra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दक्षिसी चषोव मत का साहित्य ११ विपय में कहता है तथा प्रत्यक्ष ही जीवन मुक्ति के पक्ष में नहीं है ।. पुनः श्रीकंठ श्रति के आधार पर श्रपनी प्रणाली को स्थापित करते प्रतीत होते हैं; किन्तु मेयकंड देव श्रपनी प्रणाली को श्रनुमान पर श्राधारित करने का प्रयत्न करते हैं तथा भिन्नता के भ्रनेक दूसरे विषय भी हैं जो हमारी मेयकंड देव की व्याख्या से सुगमता से समझ में भ्रा जायेंगे । ऐसा प्रतीत नहीं होत। कि श्रीकंठ का मेयकंड देव से कोई सम्बन्ध था । श्रीपत्ति ने हरदत्त को वहुत सम्मानपूर्वक शब्दों में उदुघृत किया है । हयवदनराव ने “भविष्योत्तर-पुराण” में दिए हुए हरदत्त के जीवन वृत्तार्त की श्रोर तथा उनके टीकाकार विवलिंगभूपति के लेखों का उल्लेख किया है, जो हरदसत को कलिकाल ३६७६ अर्थात्‌ लगभग ८७६ ई० में निर्धारित करते हैं; किन्तु शिव-रहस्य-दीपिका में हरदत्त का समय कलिकाल का लगभग ३००० दिया है।. प्रोफेसर शेषगिरी शास्त्री ने प्रथम तिथि को अधिक उपयुक्त स्वीकार किया है तथा स्वेदर्शन-संग्रहू में उद्धृत हरदत्त को तथा हरिह्र-तारतम्य एवं चतु्वेद-तात्पये-संग्रह के लेखक को एक ही माना है। जैसा कि हमने अन्य स्थान पर वर्णन किया है, हरदत्त गणकारिका के लेखक थे । पूर्ण संभावना है कि श्री दलाल ने भ्रपनी गणकारिका की भूमिका में इन दोनों में आन्ति की हो जिसमें वे कहते हैं कि भासवंज्ञ गणकारिका के लेखक थे । वास्तव में हरदत्त ने केवल कारिका ही लिखी तथ। न्याय लेखक भासवंज्ञ ने इस पर “रत्त टीका” सामक टीका लिखी ।?. श्रीपति ने सिद्धात्त-शिखामणि से उदुछत किया है जो रेवशाय द्वारा लिखित एक वीर झेव रचना है । यह देखकर श्राइचर्य होता है कि यद्यपि वीर शव मत की स्थापना कम से कम इतने पूर्व जितना वसव (११५७-६७) काल में हुई थी, तथापि चौदहवीं शताब्दी में माधव को वीर दौव के विपय में कुछ भी ज्ञात न था ।. फिर भी यह सन्देहात्मक है कि बया वास्तव में वसव भारत में कौव मत के संस्थापक थे ?. कन्नड़ में “वसव के वचन” नामक कुछ कथन हमारे पास हैं किन्तु उनके नाम का उल्लेख कदाचित्‌ ही वीर दौव धर्म के लेखों के दिक्षक के रूप में हम पाते हैं । बसव-पुराण नामक रचना में वसब का एक श्रर्घ-पौराश्णिक वर्सुन है । उसमें यह कहा गया है कि वीर शव मत के विस्तार के लिए दिंव ने नन्दी से संसार में श्रवतार लेने को कहा ।. बसव ही यह अवतार थे ।. वे वागेवाड़ी के निवासी थे ।. जहाँ से वे कल्याण गए, जहाँ विज्जल अथवा विज्जन राज्य करते थे (११५७-६७ ई० ) ।. उनके सामा वलदेव मंत्री थे । १ गरकारिका की पुष्पिका निम्तांकित है- आचाय मासवंज्-विरचितायामु गणकारिकायामु रतन टीका परिसमाप्ता । इससे यह श्रम हुआ कि गरणका रिका मासर्वज्ञ की रचना है, जिन्होंने केवल टीका लिखी ।. इन हरदत्त को काशिकावृत्ति पर पद-मंजरी तथा शझ्रापस्तम्व सूत्र के टीकाकार से भी मिन्न करना है ।




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