षटखंडागम : | Satkhand Agama

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Satkhand Agama by हीरालालो जैन: - heeralalo jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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घबेछाका गणितंशाख (५७) हैं । अधमागषी और प्राकृत भाषामें ठिवे हुए गणितसम्बन्घी उल्लेख अनेक प्रन्येंमिं पाये जाते हैं । घवलामें इसप्रकारके बहुसंख्यक अवतरण विद्यमान हैं । इन अवतरणेपर यथास्थान विचार किया जायगा । किन्तु यहां यह बात उछेखनीय है कि बे अवतरण निःसंरायरूपसे सिद्ध करते हैं कि जैन विद्वानेंद्वदारा ठिखे गंय गणितग्रंथ थे जो कि अब ठुप्त हो गर्ये हैं । क्षेत्रसमास और करणभावनोक नामसे जैन दिद्वानोंद्वारा िखित ग्रंथ गणितशाखसम्बन्धी ही थे | पर अब हमें ऐसे कोई ग्रंथ प्राय नहीं हैं। हमारा जैन गणितशाखसम्बन्धी अत्यन्त खंडित ज्ञान स्थानांग सूत्र उमाखातिक़त तत्वार्थाधिगमसुत्रभाष्य . सूयेप्रज्नति अनुयोगद्वारसूत्र त्रिठोकप्रज्ञप्ति त्रिलोकसार आदि गणितेतर प्रन्येंसि संकलित हे । अब इन ग्रन्थेंमिं घबलाका नाम भी जोड़ा जा सकता है । घवलाका महत्व घबला नौबीं सदीके प्रारंभ वीरसेन द्वारा लिखी गई थी । वीरसेन तत्वज्ञानी और घामिक दिव्यपुरुष थे | वे वस्तुत गणितज्ञ नहीं थे । अतः जो गणितशाखीयसामग्री धवलाके अन्तर्गत है वह उनसे प्र्वव्ती ठेखकोंकी कृति कहीं जा सकती है और मुख्यतया प्रमंगत टीकाकारोंकी जिनमेंसे पांचका इन्द्रनन्दीने अपन श्रुतावतारें उल्लेख किया है। ये टीकाकार कुद ुंद शामऊंद तुवुलर समन्तभद्र और बप्पदेव थे जिनमेंसे प्रथम ढगमग सन्‌ २०० के और अन्तिम सन्‌ ०० के लगभग हुए । अतः घवलाकी अधिकांश गणितरास्रीयसामग्री सन्‌ २०० से ६०० तकके बीचके समयकी मानी जा सकती है । इस प्रकार भारतवर्षीय गणित- शाख्रके इतिहासकारोंके छिये घबला प्रथम श्रेणीका महत्वपूर्ण ग्रंथ हो जाता है क्योंकि उसमें हमें भारतीय गणितशाखके इतिहासके सबसे अधिक अंघकारपू्ण समय अर्थात्‌ पांचवी शताब्दीसे पूर्वकी बातें मिठती हैं । विशेष अध्ययनस यह बात और मी पुष्ठ हो जाती है कि घवढाकी गणितशास्रीय सामग्री सन्‌ ५०० से प्रूवेकी है । उदाहरणाथ- धघवढामें वर्णित अनेक प्रकरियायें किसी भी अन्य ज्ञात प्रंथमें नहीं पाई जाती तथा इसमें कुछ ऐसी स्थूलताका आमास मी है जिसकी झलक पश्चातके भारतीय गणितशाख्रसे परिचित विद्वानोंकों सरलतासि मिठ सकती हे । घवलाके गणितभागमें वह परिप्रणता ओर परिष्कार नहीं है जो आयंभटीय और उसके पश्चातके प्रेथोमें है । घवलान्तगंत गाधितशाखर संख्याएं और संकेत--घवलाकार दाशमिककमसे प्रणतः परिचित हैं । इसके प्रमाण १ शीछांकने सूजकतांगसूत्र स्मयाध्ययन अनुयोगद्वार छोक २८ पर अपनी टीकामें मंगसंबंधी क हु के व कपल (#€टुधाए॒ एहलए प्रधिघिणाइ 800 एणणजिएघपिं0ा5 9) तीन नियम उद्धृत किये हूं । ये नियम किसी जैन गणित अंधमेंसे वढिये गये जान पढ़ते हैं ।




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