छ्त्रशाल ग्रन्थावली | Chatrasal-granthawali
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2.8 MB
कुल पष्ठ :
116
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)रे. पाचनता अर कुपावलाबता पर खब जोर दिया है । अपनी-ब्रीती की भी झलक यबतत्र सिलती है । राज-नीति पर तो आपने बेजोड़ पथ छिखे हैं । सिश्नबन्धु-विचोद में उलिखित राज-विनोद और गीतों का संश्रह के अतिरिक्त महाराज की रचनाओं के तीन संग्रह भीर प्राप्त हुए दैं--(१) छल्न-विछास. (२) नीति-मजरी और (३) महाराज छल्सालजू की काव्य । मेंने राज-विनोद और गीतों का संग्रह नामफ भन्थ नहीं देखे । सम्भव है राज विनोद के पथ इन तीनों संयहों में आ गये हों । छव-बिलास संकखित ग्रन्थ है । जिसे चरखारी-नरेश स्वर्गीय जुझारसि हजू देव ने संघत् १९६९ में अपने राजकीय प्रेस में छपाया था । ग्रन्थ के अन्त में लिखा है-- भूप-मणि-सुकुट महीपत जुझारसिद् ताखु करत कविता निज प्रेस में छपाई है । छ्रसाल राजेन्द्र कृत संग्रह सुयदा विचार । भूपति सिंहजुझार की छपि आज्ञा अछुसार ॥ श्रीयुक्त पण्डित जरान्नाधप्रसादुजी लिपादी ने कविता शुद्ध की और श्रीद्रयावसि हैं जेवार ने कापी लिखी--ऐसा प्म्तक के अन्त में छिखा है। छत्नविछास लीथों में छपा है । अशुद्धियों बहुत . अधिक हैं । ज्ञात नहीं लिपादीजी ने फेसा क्यों संशोधन किया । संग्रह और संद्योधन में उत्तर- दायित्व के छिपे बहुतही कम स्थान है । प्रेस से सो अन्थ प्रकाशित हों गया पर न जाने क्यों हविन्दी-जनता में वह अप्रकादित ही रहा । दो सो प्रतिया उसकी छपी थीं । छल्रविछास मैं निश्नलिखित नाम के ग़ल्थ हैं-- (१ ) श्रीराघाकृष्ण फ्चीसी ( २) कृष्णावतार के कवित्त ( ४ ) रोमावतार के कथचित्त ( ४ ) रामध्वजाइक ( ५ ) हनुमान फ्चीसी ( ६) महाराज छससाल प्रति अक्षर अनन्य के प्रइन (७) इट्टान्ती जोर फटफ्रर कचित्त ( ८ ) इष्टांती सथा राजनंतिक दोहा-समुद्द ) हि २ ३ ७ और ८ संख्यक गन्थ तो निस्संदेह फटकर पद्यों के संगहमात हैं । रहे १ ४ ५४ और ६ संख्यावाले सो उन में भी हमें इस पर संन्देद है कि उनके नाम स्वयं गन्थकारने रखें या किसी अन्य सज्नने । राधाकृष्ण-पचीसी के आदि में यह दोहा दिय/ गया है-- चरम सिद्धिपति के सुरमिरि गो-पद-रज दिर धघारि। छ््साल कहि पचीसी राधाकष्ण उन्यारि ॥ इस में सब २५ पथ हैं । २८वाँ कवित्त इस प्रकार प्रारंभ होता है-- बिरति पचीसी राधाकऊृष्ण को रिझायी चहाँ मति अनुरूप यह कछु कहि उुनाईँ मैं । अन्तिम दोहा थह है-- सभ्पति सुख छच्साल के दुश्पति राधास्याम । पूरम तासु पर्यीसका अभिमत दायक काम ॥ निम्नलिखित पंक्तियों तो निश्चय ही संगृहकत्ता की लिखी हुईं हैं--- दर
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