आर्य जंत्री तथा निदेशिका | Aaryy Jantrii Tathaa Daayarektrii

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( है ) कि अतयवस के नदियों का स्थान अन्य न वृद्धि से पांच महाभूत ८त्पन्न हुए । देशीय उपोर्तिषियों के स्थान से ब त ऊंचा है। आगेहम उपोतिष विद्याज्ञ/त।आं के शि- रोमणि-सिद्ध/न्त के कता के चतताए ६ए उन | से बृहस्पति जल से शुक वायु से शनिद्चर गुप्त सेदो को पाठक के सन्सख 5पास्थत करते है जिनमे गष्टि उत्पत्ति आए उपोतिष का आए कई ब्।तब्प्र ।वषया का यणन आर उन वीक को आप के सन्मख रखते ह।जनम पूवाक्त प्रदना के उत्तर उत्तम रात से आर घिस्तार प्रचक दिये गये है । सूच्यं बसद्ध।न्त अध्याय १४ इलाके १२ लिखा ह॒ कि परब्रह्म प स त्वा सब का ।घार स्थान छू । बह जीज से पिन्न आग पकृतिक गुणों से रात पश्चीस सुद्ध तत्व से अप्तग अर पक रसचझ। इनोक १३ प्रकृति की ते नें। अवस्था झा सत्‌ रज तम (प्रकृति की अन्तिम अवस्थ।) के भीतर बाइर सभी स्थानों में व्यापक आ क्षण शक्ति के स्यपामी परमेदवर इस सष्टि के आदि में उन प्रकतियां में आकर्षण शक्ति का संचार करते है । कट सं इलाक १४ यह सब ओर से अन्घकार में देपा हुआ प्रकाशमान गोलाकार बन गया इस में मादि से बस्तर हुए प्रका क परमाणु प्रथम रूपचान बन गये । प्रत्ताक स २१८ तक व इताका में सा उत्पत्ति का फम बणन कियागया छ | इत्नोक २२ अह्ड्लारमूर्ति घागण ब्रह्म ( महत्व अछडद्वार में विद्यमान परमात्मा या उत्पन्न करने की शक्ति ) मन ( गति ) का हि अप दि जा द्व । । वि नाल बन जन । कि... इतोक २४ तब अग्नि से सूस्य सोम से चन्द्र तेज से मंगल पाथित्री से छुघ आकाश त्पन्न होते है । इनाक २४ फिर सबच्य प ८ परमात्मा इस गोले को १२ राशियाँ आर २७ नक्तत्रों में चिभक करते हे ( करिपत विभाग है )। इनतोज २५ गोले बनाने के पदचात्‌ू प- थवी पर उद्धिद अर जड़ जन्तुओं को चनफिर मनुष्यों को 5तपन्न किया आर उन में भी गुणों के अनुसार त्तम सध्य्म नीच तीन भाग फिये गये | एतोक २७ यह मेरे प्रथप दम्यादुस्ार गुण कम के (चार से पद रीति के अ- नुसार स्थापित िय।गया । प्रथम अध्याय में घ्रह्म दून आए ब्रह्म रा जिका निरूपण करने दुए मज ्यी के स- म्यपतसर अथात्‌ च्ष चननेका बणन करके | युगका परिमाण ४३५००० घप निश्चत | ।कयागया हू ओर उजलोक २० से ऊपर करंट हुए युग के परिमाण के हज़ार युग अथात्‌ | छ३२००००००० यष का भूत सिंहागि कल्प | या चतेमान सूष्टि की आयु का चणन किया गयाह। दत्लोक ४५ ४६ ४७ में सूर ये सिद्धान्त के निमाण का को साड़ि फे आदि से १९५३७९२०००० वे पीछे बत ताया गया है दुसरे अध्याय रलोक १२ व १३ में वक अनुचक कुटिल मन्दू सन्श्ता सम स्नान भनयमपययम्मन्न्यन लि सा दा विवि वि ला या सन कक शीघ्र अति शीघ्र आठ प्रकार की गति कर करके बतलाया है कि अति शीघ्र) शीघ्र चक चलाते हैं तब चेतन आर जड़ उत्पन्न मन्द मन्दतर सम यह पांच सीधी गतियां डोते है । इलोक २३ इस गति से आकाश चायुं अग्नि जल धरती क्रम से पक २ गुण की ही अनिल खा की ) डे आर काल चक अनुवक यह ताना चक अर्थात्‌ उलटी गति है । श्लोक ४३ ५४ में मंगल १६४ बुध




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