वेदपरिचय भाग 2 | Vedparichya Bhag 2

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Book Image : वेदपरिचय भाग 2  - Vedparichya Bhag   2

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्छ तस्मांदिराठ॑जायत विराजो आधिपुरंपः । अत्यरि ७ स जञातो च्यत पश्चाद्धसिमथों पुरः ५0 पदानि- तस्मांत। विडराट्र । अजायत ।वि5राजं: । अधि पुरंपः । सः । जातः । आतिं । अरिच्यत। पश्चात्‌ । सूर्मिं। अथो इतिं। पुर 0५0 अन्वय:- तस्मात्‌ विराट अजायत। विराज: आंे पुरुष: । सः जात: अति अरिच्यत । पश्चात्‌ मूरमि अथो पुर: ॥५॥ थ-- (तस्मात्‌) उस पकपात्‌ परमात्मासे (विराट) विराट [ जिसमें सूर्यंचन्द्रादि विविध पदार्थ प्रकाशते हैं ऐसा] पुरुप (अजायत) प्रकट हुआ | इस (विराज्ः अधि) चिरादू [पुरुष के ऊपर) पक अधिष्टाता (पुरुप१) पुरुष हुआ । (सभ जात) वद्द श्रकट दोते दि (अति अरिच्यत) अतिरिक्त अर्थात्‌ घिधिध रुपौमें विमक्त हुआ। (पश्चात्‌ मूर्ति) पदलें भूमि वनी और (अंथों पुर) उसके नंतर पृथ्वीके ऊपरके विविध देदद वने ॥ण्१॥ भाचाथ-- [परमात्मा के एक अल्पसे अशे यद सब सष्टि बनी, ऐसा पूर्व मन्त्र में कहा, उसके मनुसंधानसे इस मन्श्रका भाशय देखना योग्य है] उस मंदासे ये सूर्यचन्दादि सब दैंदीप्यमान गोल बने, इन सबका नियमन करनेवाला एक भधिष्ठाता निर्माण हुआ । चहद प्रकट द्वोतेद्टि अनेक वस्तुओं 'की निर्मिति हुई । अ्रयमतः पृथ्वी बनी, उसके पश्चात्‌ उस प्रथ्वीपर रददनेबाली विविघ वस्तुएं बनीं, अयांत अनेक छोटेमोटे दे बने ॥न0 यजुर्वेद और सामवेदका पाठ “ततो विराडज्ञायत” ऐसा हे (सा० ६२१] -अथबंवेद का पाठ ऐसा दै--




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