भावना-शतक | Bhavna-shatk

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Bhavna-shatk by मुनिराज पंडित रत्नाचंद्र - muniraj pandit ratnachandra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(१) अनित्य - भावना [ मावनादों का थ्ारंम श्नित्य-मावना ने होता है। श्रनित्य पदार्थों में सबने अधिक ललचानेवाली श्र दु खदाई माया है अत सबने पढ़ले लड्मी की झनित्यपत्ता का वर्णन श्रागे के दीन जी श्लोकों में क्या जाता है । ] झनिंत्य-नावना चातोदेल्लितदीपकाडकुरसभां लक्ष्मी जगन्मोहिनीम्‌ । दृप्टवा कि दृदि मोदसे हतमते मत्वा मम श्रीरिति॥ पुरयानां विगमेउथवा सतिपयथ प्राप्तेडप्रिय॑ तत्क्षणा-- दुस्मिन्नेव भवे भवत्युभयथा तस्यावियोग परम 0 २ ॥ बथ--दे मदर लदमी जगत को मोहित करनेवाली है यही नहीं यल्कि दवा ने कॉर्पनेवाली दीपक की लौ की तरह श्रस्थिर और नष्ट हो जानेवाली दै | चद्द तो प्रत्यक्ष दिखाई देता दै फिर भी यदद मेरी लघ्मी है ऐसा तू जो मान वैठता है सो क्या यह तेरी मूदता नहीं दे हे मूढ | लद्मी की प्राप्ति दोना पुण्य के श्रधीन है । पुर की सीमा होती | श्र




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