अभयपदांक | Abhayapadank
श्रेणी : हिंदू - Hinduism
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
42.27 MB
कुल पष्ठ :
603
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हि
4 युधिश्टिस्का वध करनेके छिये उद्चत हुए अजुनकों भगवान् श्रीकृष्णका धर्मीपदेश #+.. ३८३
कि
मानद ! जो युद्ध न करता हो, शत्रुता न रखता
हो, संग्रामसे विमुल होकर भागा जा रहा हो, शरणमें
आता हो, हाथ जोड़कर आश्रयमें आ पड़ा हो तथा
असावधान हो, ऐसे मनुष्पका वध करना श्रेष्ठ पुरुष
अच्छा नहीं समझते हैं । तुम्हारे बड़े भाईमें उपर्युक्त
सभी बाते हैं |
सत्य्ते बढ़कर कुछ भी नहीं है, पर सत्यका पालन
विवेकपूर्वक होना चाहिये
त्वया चैव॑ त्रत॑ पार्थ बालेनेव कृत पुरा ।
तसादधर्मसंयुक्तं मौख्यात् कम व्यवस्यसि ॥।
स गुरुं पार्थ कसात् त॑ हन्तुकामो5भिधावसि ।
असम्प्रधाय धर्माणां गतिं सष्ष्मां दुरत्ययास् ॥।
इदं धर्मरहस्य॑ च तव वश्ष्यामि पाण्डव |
यद् ्रूयात् तब भीष्मो हि पाण्डवो वा युधिष्ठिर। |
बिदुरो वा तथा क्षत्ता कुन्ती वापि यशखिनी ।
तत् ते वश्यामि तनवेन निवोधेतदू धनंजय ॥
सत्यस्थ चचनं साघु न सत्याद विद्यते परम ।
तन्वेनैव सुदुर्चेय॑ पद्य सत्यमलुष्टितम् ॥.
किमाथयं झतप्रज्न पुरुपोडपि सुदारुण। |
सुमहत् प्राप्लुयात् पुण्य वलाकोजन्धवधादिव ॥।
किमाथयं पुनरमूढों ध्मकामों द्यपण्डित: ।
सुमहत् प्राप्लुयात् पापमापगाख्विव कौशिक: ॥।
( महाभारत कर्ण० ६९ । २७--३९१५ ३६-३७ ))
पार्ग !. तुमने नासमझ् वाल्कके समान पहले
कोई प्रतिज्ञा वार ठी थी, इसीलिये तुम मूर्बतावश
अधर्मयुक्त कार्य करनेको तैयार हो गये हो । कुन्ती-
कुमार ! बताओ तो तुम घर्मके सूहम एवं दुर्वोध
खरूपका अच्छी तरह विचार किये बिंना ही अपने
ज्येष्ठ श्राताका चर करनेके छ्ि कैसे दौड़ पढ़े ?
पाण्डुनन्दन ! मैं तुम्हें यह घ्मका रहस्य वता रहा हूँ ।
घर्नजय 1 पितामह भीष्म, पाण्डुपुत्र युविष्ठिर, विदुरजी
अधवा यहाखिनी दुन्तीदेवी--ये लोग तुम्हें धर्मके
जिस तसत्रका उपदेश कर सकते हैं, उसीको मैं ठीक-
ठीक वता रहा हूँ। इसे ध्यान देकर सुनो । सत्य
बोठना उत्त है | सत्यसे बढ़कर दूसरा कुछ नहीं है;
परंतु यह सफझ छो कि सत्पुरुषंद्वारा आचरणमें लाये
इए सत्पके 'यधार्थ खरूपका ज्ञान अत्यन्त कठिन होता
है | जिसकी बुद्धि शुद्ध ( निष्काम ) है, वह पुरुष यदि
अत्यन्त कठोर होकर भी, जैसे अंधे पझुको मार देनेसे
बलाक नामक व्याघ पुण्यका मांगी हुआ था, उसी
प्रकार महान् पुण्य प्राप्त कर ले तो क्या आश्चर्य है !
इसी तरह जो धर्मकी इच्छा तो रखता है, पर है म्ख
और ज्ञानी, वह नदियोंके संगमपर बसे हुए कौशिक
मुनिकी भाँति यदि. अज्ञानपूर्वक धर्म करके थी महान्
पापका भागी हो जाय तो क्या आध्र्य है ? .
अर्जुन उवाच
आचकव भगवन्नेतदू यथा विन्दास्यहं तथा हल
वलाकस्याचुसम्बन्ध॑ नदीनां कौदिकस्प च ॥
( मददाभारत क्ण० द९ | रै८ )
अजजुन बोले--मगवन् ! वछाक नामक व्याध और
नदिवोंकि संगमपर रहनेवाले कोंदिक सुनिकी कथा कहिये;
जिससे में इस विषयकों अच्छी तरह समझ सकूँ। ....
व्याधने हिंसक प्राणोकों सारकर भी स्वर्ग आप हिया. .
वासुदेव उवाच कि
पुरा व्याथोध्मवत् कथिद् बलाकों नाम भारत 1.
यात्राथे पुन्रद्रस्थ उभाव् हन्ति न कामतः ॥
बद्धा च मातापितरों विभत्यन्यांशर संश्रितानू।
खधमंनिरतों . नित्य॑_ सत्यवोगनसयक |)
सर कदाचिन्सरगं लिप्सुनाम्यविन्दन्रगं कचित् | दी
अप विवन्तें दच्छे ब्वापद घाणचक्षुकमू ॥
अद्पूवेमषि तह सच तेन हत॑ तदा।
अन्धे हते ततो व्योश्न। पुष्पयर्ष पपात च ||”
अप्सरोगीतवादित्रैनीदित॑॑ च मनोरमम् ।
विमानमगमत् स्र्सान्प्रगव्याधनिनीपया
तदू भूत॑ स्वभूतानामभावाय किठार्जुन |
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