रामनरेश त्रिपाठी | Raamanaresh Tripathi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3.53 MB
कुल पष्ठ :
110
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जीवन परिचय 15 त्रिपाठीजी को सुपुरद कर दिया । त्रिपाठी जी के आरम्भिक मार्गदर्शन और कार्ये- संचालन से दक्षिण में हिन्दी-प्रचार का पौधा विकसित होने लगा 1 गाँधीजी के सम्पक्कें में आने के बाद त्रिपाठी जी का दायित्व भौर बढ़ गया । ने साहित्यकार थे। उन्होंने लेखनी की सहायता से गाँधी जी के सिद्धान्तों का प्रचार करने का निश्चय कर लिया । 1920 ई. में उन्होंने गाँधी जी कौन हैं? नामक पुस्तक प्रकाशित की जिसमें उनकी जीवनी के अतिरिवत सत्याग्रह भर असहयोग पर विशद चर्चा की गयी थी । इस पुस्तक की पाँच हज़ार प्रतियों का पहला संस्करण देखते ही देखते वितरित हो गया । पाँच हुज्ञार प्रतियों का दूसरा संस्करण भी लेखक को उसी वर्ष निकालना पड़ा । इस पुस्तक में त्रिपाठी जी का प्रसिद्ध सत्याग्रह-गीत है जिसमें उन्होंने स्वतन्त्रता के लिए जूझ रहे भारतीय जीवट को इन शब्दों में रूपायित किया है सत्य कहने से न रुकती जीभ है काँपते क्यों हो ? इसे ही काट लो । सैं कलम हूँ एक मेरी जीभ से क्या करोगे जब बढ़ेंगी सेकड़ों ॥। गाँधीजी महापुरुष थे विश्व भानव थे । सनका जीवन किसी देश विशेष के लिए नहीं समस्त संसार के लिए था । ऐसे महामानव को चरित्त-नायक बनाकर 1920 ई. में त्रिपाठी जी ने अपना सर्वेप्रसिद्ध खण्ड काव्य पथिक लिखा । किसानों पर होनेवाले अत्याचारों के विरोध में तथा उनमें राजनीतिक चेतना विकसित करने के उद्देश्य से 1921 ई. में उन्होंने देश का दुखी अंग प्रकाशित किया । उनमें भारत की ग्रामीण जनता का आह्वान करते हुए उन्होंने लिखा-- सत्याग्रह और असहयोग के प्रचारक महात्मा गाँधी ने सारे हिन्दुस्तान को असहयोग का मनत्त्र फूंककर जीवित किया है । सारे हिन्दुस्तान के प्रतिनिधियों की एक बड़ी सभा कांग्रेस है । उसने प्रतिज्ञा की है कि इस सरकार से असहयोग करके दिसम्बर 1921 ई.के भीतर हिन्दुस्तान में स्वराज्य स्थापित किया जायेगा । उसकी प्रतिज्ञा सारे देश की प्रतिज्ञा है। हमें अब स्वराज्य के लिए भरपूर उद्योग करना चाहिए चाहे जेल जाना पड़े मार खानी पड़े फाँसी चढ़ना पड़े लेकिन हमें अपनी प्रतिज्ञा निभानी पड़ेगी । च्रिपाठी जी की कथनी भर करनी में अन्तर नहीं था । उन्होंने भी आन्दोलन में सक्रिय भाग लिया । अपने उत्कट देश- प्रेम और साहित्यिक सेवा के कारण वे नेताओं के घनिप्ठ मित्र बन गये थे । आज़ादी के लिए उन्होंने राजनीतिक मंचों से जनता का आह्वान किया अपनी रचनाओं से युवकों में संगठन और सवेस्व-समर्पण के भाव भरे तथा स्वय सत्या- ग्रही बनकर साहित्यिक समुदाय का प्रतिनिधित्व किया । सेठ गोविन्ददास जी ने उनके सम्बन्ध में ठीक ही लिखा कि वे ऐसे व्यक्ति नही थे कि जब मातृभूमि की
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