ये आदमी ये चूहे | Ye Admi Ye Choohe

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Ye Admi Ye Choohe by उपेन्द्रनाथ अश्क - Upendranath Ashk

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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न द्रव लि, र एक हे सोलेदाद के दक्खिन में कुद,मील दूर, सैलॉमस नह पहाड़ी के पास श्ाकर बहने लगती है शोर उसकी पानों एक संकरे गड़े के कारण _ श्रोर भी हरा हो जाता है । इसे पानों में कुडड गर्मी भी होतीं है, क्योंकि इस गहराई तक पहुँचने से पहले वढ पीली वालू के ऊपर, धूप में चमचमाता हुश्रा, वदद कर श्राता है । नदी के एक ग्रंर सुनदले निचले ढाल चक्कर खाते हुए, विराट पथरीले 'गैवीलन' पहाड़ों में खो जाते हैं, पर घाटी की श्रोर नदी के किनारे-किनारे पेड़ों की पंक्तियाँ दूर तक चली गयी हैं । उन में, हर बसंत के मौसम में हरे भरे श्रीर ताज़ा हो उठने वाले, सरई के पेड हैं जो श्रपनी पत्तियों के निचले सिरों के पीछे शीत- काल की बाद का. कूडा-करकट छिपाये रहते हैं । उनमें कुफे हुए




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