भावसंग्रहादि | Bhav Sangrahadi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7.77 MB
कुल पष्ठ :
328
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भावर्सग्रह । दे ः अउदइउ परिणाभिउ खयउवसमिउ तहा उबसमभो खइओ । णए पंच पहाणा भावा जीवाण होंति लियलोशए ॥ ८ ॥। सौदयिक पारिणामिक क्षायोपदामिकस्त थौपरामिक क्षायिकः । एते पंच प्रधाना भावा जीवाना भवन्ति जीवलोकफे ॥ ते चियं पज्ायगया चउददणुणठाणणामया भणिया । लहिऊण उदय उबसम खयउवसम खडं हु कम्मस्स ॥९॥ ते एवं पर्यायगताश्रतुदेशगुणस्थाननामका भणिताः | लब्ध्वा उदयमुप्रशमं क्षयोपशभं क्षयं हि कर्मण ॥ मिच्छा सासण मिस्सो अविरियसम्मो य देसविरदों य । विरओ पमत्त इयरो अपुव्व अणियट्टि सुदहमो य ॥ १० ॥ मिध्यात्व॑ सासादन मिश्र अविरतसम्यक्त्व च देशविरत च । विरत॑ प्रमत्त इतरदपूर्वमनिदृत्ति सूक्ष्म च । उवसंतखीणमोहे सजोइकेवछिजिणों अजोगी ये । ए चउदस गमुणठाणा कमेण सिद्धां य णायव्वां ॥ ११ ॥। पलनिटयमटरसनपदमवसनननपननणनाणाारस्यवव ससटवटरटवयटटटटटरटटटटटटटटटसपथथप्यय १ णइ चेअ चिभव एवार्धे । २ य ख। ३ अजोइईओ ख। ४ सिद्धा मुणे- यन्वा ख । ५ अस्मादमे ब्याख्येय गाधासूत्रद्यस्य ख-पुर्तके-- अर्य चतुदशगरुणश्थानश्य विवरणा क्रियते मिच्छा-मिधथ्यात्वगुणस्थान १ । सासण-सासादनयगुणस्थान॑ २ । मिस्सो-मिश्रगुणस्थान ३ । अविरियसम्मो- अविरतसम्यग्दष्रियुणस्थान तत्कथं सम्यक्त्वमस्ति श्रत नास्ति ४। देसविरओ य-विरताविरत इत्यर्थ तत्कर्थ ? स्थावरप्रइत्तिझ्लसनिश्वतिरित्यर्थ एकदेशबविरत- श्रावकगुणस्थान॑ं ५ । विरया पमत इतिं को यतित्वे सत्यपि आ समस्तात पंचदशप्रमादसदित इत्यर्थ इति गुणस्थानं षष्ठ ६ । इयरो-अप्रमत्त पंश देश प्रमादे रदिसी महान यतिरित्यर्थ इति संप्तयूणत्थान ७ । अपुव्य-अपूरवकरणनामगुण- स्थान ८ । भणियदि-अनिइत्तिनामगुणस्थान तस्मिन गुणस्थाने व्याणेक्लाइस्ति
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