चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य | Chandragupt Vikramaditya
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8.55 MB
कुल पष्ठ :
342
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रथम परि८
( रेच०--४१४ तक ) ( गुप्ल० दल ६४)
सूगया
भ्राज डजपिनी के रखेल ( सरगयाथे रक्तित वन )) में भ्रच्छी चहतत-
पल है । प्राय: २० शिकारी हाथी-दथिनियों का कुंड उपस्थित हे,
जिन पर लगभग एक शत लोग सवार हैं । इनमें से दस-बारद
शगया खेकनेवाले हैं, शेष केवल शिकार देखने श्राए हैं । खाया का
झायोजन घनुष-वाण तथा खज्ड चर्म से किया गया है । कोई १००
लोगों ने तीन श्रोर से जंगल घेरकर डेढ-दो कोस से हाँका श्रारंभ
किया था । राजपुरुषबरग तथा श्रतिथि श्रादि के किषे उत्तम खाद्य
वस्तु भी एकत्र दी जा चुरी हैं । दस-बारद दाथी इघर-उघर ठीक
स्थानों पर लगाए गए हैं । सारा श्ायोजन मददात्तत्रप तृतीय रुद्रसेन
के भागिनेय युवराज सिंइसेन ने राजकुमार चंद्रगप्त के लिये किया
है । चुवराज इंद्रदत्त भी चद्रगप्त के मित्र होने से श्रामंत्रित ोकर
पघारे हैं । सुगया देखने के लिये काहिदाप्त भी एक हाथी पर
सवार प्रस्तुत हैं । उनका भी हाथी एक बंद पर लगाया जा चुका
है। ्ापने अपने साथी से कहा--'माई, इम लोगों के पास तो
शस्त्रातर हैं नहीं; न उनका श्रभ्यास ही है, फिर यद्द क्या दो रहा
है कि धपना हाथी भी बंद पर लगा हुआ है!”
साथी--इसमें संदेह करने की झावश्यकता नहीं, क्योंकि इस हाथी
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