चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य | Chandragupt Vikramaditya

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Chandragupt Vikramaditya  by मिश्र बंधु - Mishr Bandhu

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रथम परि८ ( रेच०--४१४ तक ) ( गुप्ल० दल ६४) सूगया भ्राज डजपिनी के रखेल ( सरगयाथे रक्तित वन )) में भ्रच्छी चहतत- पल है । प्राय: २० शिकारी हाथी-दथिनियों का कुंड उपस्थित हे, जिन पर लगभग एक शत लोग सवार हैं । इनमें से दस-बारद शगया खेकनेवाले हैं, शेष केवल शिकार देखने श्राए हैं । खाया का झायोजन घनुष-वाण तथा खज्ड चर्म से किया गया है । कोई १०० लोगों ने तीन श्रोर से जंगल घेरकर डेढ-दो कोस से हाँका श्रारंभ किया था । राजपुरुषबरग तथा श्रतिथि श्रादि के किषे उत्तम खाद्य वस्तु भी एकत्र दी जा चुरी हैं । दस-बारद दाथी इघर-उघर ठीक स्थानों पर लगाए गए हैं । सारा श्ायोजन मददात्तत्रप तृतीय रुद्रसेन के भागिनेय युवराज सिंइसेन ने राजकुमार चंद्रगप्त के लिये किया है । चुवराज इंद्रदत्त भी चद्रगप्त के मित्र होने से श्रामंत्रित ोकर पघारे हैं । सुगया देखने के लिये काहिदाप्त भी एक हाथी पर सवार प्रस्तुत हैं । उनका भी हाथी एक बंद पर लगाया जा चुका है। ्ापने अपने साथी से कहा--'माई, इम लोगों के पास तो शस्त्रातर हैं नहीं; न उनका श्रभ्यास ही है, फिर यद्द क्या दो रहा है कि धपना हाथी भी बंद पर लगा हुआ है!” साथी--इसमें संदेह करने की झावश्यकता नहीं, क्योंकि इस हाथी




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