प्रबोध चन्द्रोदय | Prabodh Chandrodaya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( हुई ) शुद्ध निष्कलडू प्रबोध-वन्द का उदय होने छगा . मेरे लिये यह चन्द्र सूर्य के सदश है क्योंकि मुकको ते इसी के झालेक से यट्किथ्वित्‌ आमा प्राप्त करनी है। ज़ास अपनी ता कुछ है ही नहीं । कई वर्ष हुए आर्य सूरि को संस्कृत जातक-माला के दूश खुने हुए बौद्ध ज्ञातकों का हिन्दी अजुवाद मैंने प्रकाशित किया था। उसमें प्रायः चालीस तरह के भिनन-सिर्न लन्दों में मूल-स्छेकों के अनुवाद किये गये थे। यह सभी छुन्द ब्रजसाषा में थे। हिन्दी संस्कृत और भर ज़ी के विख्यात लेखक तथा धोछपुर राज्य के शिक्ता-विभाग के डायरेक्टर लाला कन्नूमल जी एम० ५० ने उक्त अजुवाद की आला चना करते हुए सुमको छिखा था-- हे ८० ० भछपा इट्ापहासाइ उप & एफ 0 पाउट पहडलाप5 हटा] दॉिडप्पिण 25 1. प्घ5 एद16 लिपि क0पा 965. 0060८ 6प्त0काएप हा कण ट्पपरह्ए कुएप वा 0छएणपााषि पिाह्प्ह2 कण्णा अधि पुप्मीपिहड 25 8 कार 20 2 006 ++ बस इसी से प्रोत्साहित होकर मैंने इस बार खड़ी बोली में ठगमग ७० प्रकार के मिनन २ छुत्दों में मूल-स्लेकों के अनुवाद किये हैं यहीँ तक कि अरे जी के महाकदि रपेस्सर के प्रसिद्ध परम मनोहर छुन्द ( 50675 81277 5धशित 23. ते में सो पक श्छेक का च्जुवाद किया है जा हिन्दी के लिये पक बिलकुल नई बात हैं ( देखिये पूष्ठ १०७ )। ण्क तो अलुवाद उस पर खड़ी बोली उस पर छाम्दें को विभिन्‍नता बस मेरा कार्य्य अत्यन्त कट ओर कठोर हो गया । अतः भूलकर भी ऐसा स्रयाठ नहीं दोत। है कि इस अनुवाद में मूखें- भयानक मूदें-- नहीं हुई हों । अतण्व सहदय पाठक क्षमा करंगे और सुमाने को कृपा करेंगे ।




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