दूसरा सप्तक | Doosra Saptak

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Doosra Saptak by भवनिप्रसाद मिश्र - Bhavaniprasad Mishr

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about भवनिप्रसाद मिश्र - Bhavaniprasad Mishr

Add Infomation AboutBhavaniprasad Mishr

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
( ३ ) जब तक कि सार। ज्ञान फिर एक हो कर सत्र की पहुँच में न भा जाय-एसब अठग-अछग मुददावरे फिर एक हो कर “एक भाषा, एक मुहावरा” के नारे के अधीन न हो -जायें ।. उसे अभी कुछ कहना है जिसे वह महत्त्वपूर्ण मानता है, इस लिए वह उसे उन के लिए कहता है जो उसे समझें, जिन्हें व समझा सके; साधारणीकरण को उसने छोड़ नहीं दिया है पर वह्द जितनों तक पहुँच सके उन तक पहुँचता रह कर और आगे जाना चाहता है, उन को छोड़ कर नहीं । असल में देखें तो वही परम्परा को साथ छे कर चठना चाहता है, क्योंकि वह कभी उसे युग से कट कर अछग होने नहीं देता, जब कि उस के विरोधी परिणामतः यह कहते हैं कि कक का सत्य करू सब समझते थे, भाज का सत्य अगर आज सब एक साथ नहीं समझते तो हम उसे छोड़ कर कल ही का सत्य कहें”--विना यह विचारे कि कठ के उस सत्य की आज क्या प्रासंगिकता है, भाज कौन उस के साथ तुष्टिकर रागात्सक सम्बन्ध जोड़ सकता है ! [ र ] यहाँ तक हम तार सप्तक” और उस की उत्तेजनाप्रसूत आलोचनाओं से उलझते रहे हैं । “दूसरा सप्तक' की भूमिका को इस से आगे जाना चाहिए। वल्कि यहाँ से उसे भारम्भ करना चाहिए, क्योंकि एक पुस्तक की सफ़ाई दूसरी पुस्तक की भूमिका में देना दोनों के साथ थोड़ा अन्याय करना है। हम यहाँ “तार सप्तक' का उल्लेख कर के आलोचकों के तत्सम्बन्धी पूर्वग्रहों को इघर न आकृष्ट करते, यदि यह अनुभव न करते कि दोनों पुस्तकों का नाम-साम्य और दोनों का एक सम्पादुकत्व ही इस के लिए काफ़ी होगा। उन पूर्वग्रह्ों का आरोप अगर होना ही है, तो क्यों न उन का उत्तर देते चला जाय ? “दूसरा सप्तक' के कवियों में सम्पादक स्वयं एक नहीं है, इस से उस का कार्य कुछ कम कटिन हो गया है । कवियों के वारे में कुछ कहने में एक ओर हमें संकोच कम होगा, दूसरी ओर आप भी हमारी वात को आसानी से एक




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now