स्वास्थ्य - रक्षा | Swasthaya Raksha

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Swasthay Raksha by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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स्वास्थ्य-रक्षा १७ दक्ति या शरीर की रोकथाम की दाक्ति पर निर्भर रहता है। यों तो हर समय ही हमारे शरीर के ग्रासपास श्रनगिनत रोगोत्पादक कीटाणु मौजूद रहते है तथा शरीर में भी घुसते ही रहते हैं, परन्तु शरीर इनका सहार कर डालता है श्रौर हमे कोई हानि नही पहुंचती । पर यदि शरीर में इनका सहार न हो तो ये चुपचाप दरीर मे पड़े रहते है श्रर जब इनको फलने-फूलने का अनुकूल श्रवसर मिलता है, ये घीघ्रता से बढ़ने लगते हैं श्रोर शरीर को रोगी बना देते हैं। याद रखने की बात है कि हर वीमारी के कीटाणु झलग-भ्रलग होते हैं। प्लेग, हैज़ा, चेचक, क्षय झादि रोगों के कीटाणु भिन्न-भिन्न होते हू । कीटाएुु रोग कंसे उत्पन्न करते हैं? जब कीटाणु दारीर में प्रवेश कर जाते है, श्रौद शरीर की रक्षा करनेवाली शक्ति यदि कम होती है, तो शरीर में इनकी वृद्धि होने लगती है; श्रोर मनुप्य रोगी हो जाता है। कीटाणुओ के शिकार सदा थे ही लोग होते है, जो श्रनुचित परिस्थितियों में रहते है। मनुष्य के शरीर में इन कीटाणुसओ को यदि 'रहने योग्य स्थान मिल जाता है तो जिन्दा रहकर शरीर के भीतर ये बहुत जल्द बढ जाते हैं। इनमे से बहुत-से तो शरीर के बाहर निकलकर भी पानी मे, ज़मीन पर, कुड़ें-ककंट मे, खाने मे श्रौर कपड़ों में कुछ समय तक जी पित रहते है । छूत का सिलसिला कीटाणुश्रो से पैदा होनेवाले रोगो के फैलने के लिए तीन विनेष साधन है-- १. छत का झ्राघार; जहां से कीटाणु मरा सकें ।




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