साहस की यात्राएं | Sahas Ki Yatrae

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Sahas Ki Yatrae by यशपाल जैन - Yashpal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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फाहियान को मारस-याता दे संग रहो थी । पानो फी तलाश में सभी भटक रहे थे । चारों झोर रेगिस्तान फंला हुमा था। सब लोग झलग-प्रलम हो गये । पानों की खोज में श्रागे सढ़ते ही फाहियान को मेदान में हड्टियां श्रीर पिजर बिखरे हुए दिखाई दिये । ऐसा लगता था, मानों बहू हुड्टियों 1 का मंदान हो । फाहियान घबरा गया । उसने सोचा कि इस मेंदान में श्राकर लोग जदर सर जाते होंगे । लेकिन उसने हिम्मत न हारी । दोस्तों से बियुड़कर ' फाहियान श्रकेला ही चलता रहा । हिम्मत से कठिन- से-कठिन काम सरल हो जाते हैं । फाहियान ने रेगि- स्तान पार फर लिया । फिर बहू एक जगह रुक गया । कुछ दिनों बाद




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