शिक्षा | Shiksha
श्रेणी : शिक्षा / Education
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1.73 MB
कुल पष्ठ :
66
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)शिक्षा का तस्व 1
लिया, के मन में है। वहुघा वह प्रकाशित
दे न होकर ढका रहता है। और जव आवरण
घीरे-घीरे हृदता जाता है, तो हम कहते हे कि ' हम सीख
रहे है। ज्यो-ज्यो इस आविष्करण की क्रिया बढ़ती जाती
है, त्यों-त्यों हमारे जान की वृद्धि होती जाती है। जिस मनुष्य
पर से यह आवरण उठता जा रहा है, वह अस्य व्यक्तियों की
गपेक्षा अधिक जानी है, और जिस पर यह भावरण तह-पर-तट्ठ
पडा हुगा है, वह अजानी है। जिस पर से यह आवरण पुरा हट
जाता है, वह स्वेज्ञ, स्वेदर्शी हो जाता है । चकमक पत्थर के
टुकड़े में अर्नि के समान, ज्ञान मन में निहित है भौर सुझाव या
उद्दीपक-कारण ही वह घषंण है, जो उस ज्ञानाग्नि को प्रकाशित
कर देता है। सभी ज्ञान गौर सभी दक्तियाँ भीतर हूं। हम
जिन्हें घवि्तियाँ, प्रकृति के रहस्य या बल कहते हे, वे सब भीतर
ही हूं। मनुष्य की आत्मा से ही सारा ज्ञान आता है। जो ज्ञान
सनातन काल से मनुष्य के भीतर निहित है, उसी को वह वाहर
प्रकट करता है, अपने भीतर देख पाता है ।
वास्तव में कभी किसी व्यक्ति ने किसी दूसरे को नही
नि सिखाया । हममें से प्रत्येक को अपने-आपको
को सिखाता है। सिखाना होगा । वाहर के गुरु तो केवल
हु। की देनेवाढे कारण न
सुझाव या प्रंरणा दे क् मात्र दे;
जो हमारे अन्तस्थ युरु को सब विपयों का मम समझने के
लिए उद्दोधित कर देते है । तव फिर बाते हमारे ही अनुभव
और घिचार की दझाक्ति के द्वारा स्पष्टतर हो जायँगी और हम
अपनी आत्मा सें उनकी अनुभूति करने लगेंगे । वह समूचा
वशाल वट्वृक्ष: जो आज कई एकडु जमीन घेरे हुए है; उस
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