रत्नभण्डार अर्थात ज्ञान रामायण | Ratna Bhandar Arthat Gyan Ramayan

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Ratna Bhandar Arthat Gyan Ramayan by चिरुमनलाल जी वैश्य - Chirumanlal Ji Vaishya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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झानरामायण ( श्प सजुप्य शरीरका महत्व सोतज्ु घरि हरि भजह्टि नजेनर 1 दोईं विपय रतिमन्द मम्द तर 11 कांच किराच चदलि शठलेद्दी । करते डारि परस मणिदेंढी ॥ रतन पाइ विपय भ्न देहीं । पलटि सुघाते शट चिपलेदीं ॥ __. जो सन्ुप्य शरीर पाफर इंशवर सजन न फर विपयोमें सन लगाते हैं चहद मन्द, घुद्धि पारस मणि के घद्ले कांच को सरोदते 'पथया झस्त देकर चिप उदरण करते हैं 1 शिक्ता-सजष्य शरीर को पाकर श्र .कर्म करना ही जीयन का साफल्य है || 2 जल फ़ भर छु




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