असूर्यलोक | Asooryalok

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Asooryalok by भगवतीकुमार शर्मा - Bhagavatikumar Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ही देखते पूरा शहर पानी से घिर गया । निगमशंकर और रमानाथजी के घर जिस मुहल्ले मे थे वहां भी बाढ़ का पानी घुस आया । . चारों ओर घबराहट फैल गई । रमानाथ सत्या आदि उनके मकान की छत्त पर चढ़ गए । निगमशंकर के घर में छत नहीं थी छप्पर था । अपने माता पिता को छप्पर पर पहुंचाने के लिए तिलक एक सीढ़ी ले आया । घर में तो कमर तक पानी चढ़ आया था और बढ़ता ही जा रहा था । निगमशंकर ने तिलक से कहा ये पानी तो मेरा सर्वस्व लेने के लिए ही आया है । सीढ़ी से हो सकता है कि हम बच जाएं लेकिन मेरी अमूल्य किताबों और पोधियों को. ... । तिलक लालटेन लेकर किताबों वाले कमरे के पास गया । उसका हृदय जैसे धम सा गया खिड़कियों जालियों दरारों से पानी ग्रंथभंडार में फैल चुका था| बहत्तर घंटे बाद बाढ़ का पानी उतरा | घर में काफी नुकसान हुआ था | पुस्तकों वाला कमरा ही सबसे बुरी तरह प्रभावित हुआ था । अपनी जान की तरह जिन अमूल्य पुस्तकों और पोधियों का जतन किया था वे बाढ़ के पानी में नष्ट हो गई थीं । यह देखकर तिलक का कलेजा मुंह को आ गया था । उसकी असली चिंता वापूजी को लेकर थी कि वे इस आधात को कैसे झेल पाएंगे? निगमशंकर पहले तो सुत्र से हो गए लेकिन धीरे-धीरे उन्हें कुछ राहत मिली उनके हृदय में शक्ति आई । वे बोले तिलक अब इस घर में दो ही ग्रंथ बचे हैं एक मैं और दूसरे तुम । अब मैं उतना अधिक व्यधित नहीं हूं । अंधड़ आकर मेरे भीतर से गुजर गया है । किताबें और पोधियां तो पानी में बह गई । लेकिन अभी भी मैं हूं और तुम भी हो । वरूण देव उसका एक कंगूरा भी झड़ा नहीं पाएंगे। हम दोनो मिल कर इस नष्ट हो चुके भंडार को पुनजीर्विंत नहीं कर सकते क्या तिलक? बोलते-बोलते वे बेहोश .15




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