युगलसम्वाद | Yugalsamvad

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Yugalsamvad by युगलकिशोर - Yugalkishor

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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यगलसम्वबाद । १३ सोहरूपी निद्रा क्या है और उस से जागना आर भरे सागरसे पार होना और सुखके किनारेपर पहुँचना कया हे और उसके साधन क्या क्या हैं मैंकीनहूं देह हूं या जीव हूं आर जीवात्मा और परमात्माका क्या स्वरूप है माया आर इदवर का कया स्वरूपहे ॥ अआ्चा्य स दूगरु सातौश्रइनका उत्तरसम कातेहें ॥ है शिण्यसाव- घान होकर सुन एक आत्मा चेतन्य परिपण जिस को परमइवर कहते हैं अचिंत्य शक्तिवाला हूं एक इक्षण शक्ति एकसे. बहुत होजानेकी भी उसकी शक्ती है उसी इच्छाका नाम मायाहे उसके दो दो अंग हैं ज्ञानशक्ति करके विद्या अपोषण शक्ति करके अधिया अविदया के च्यथे पहिले कहि आये हैं उसी को अज्ञान अन्यथा मानस ऑन्तिभी कहते हैं तिस अवियासे भया अह कार अहंकार से मया मोह ताकरके अपने निजस्वरूप का ज्ञान तो मखगया देह आर घट पट च्ञादे संसार व्यवहार का ज्ञान होगया यही सोहरूपी निद्राहू जो सुख दुःख क्रिया जगत्‌ की मान होती है यही इस निद्वा के स्वप्न हैं जिसमें ये प्राणी जन्सानुजन्म से सोया. मया जन्म मरण आदिक दुःख मोगरहा है इस निंद्राका नाश होना चोर ज्ञानरूपी जायत में स्थित होना अर्थात्‌ अ- पने आआत्माको सच्चिदानन्द स्वरूप अकततों अभोक्ता नित्य निर्विकार निदचयकर उसीमें अपनी छत्तियों का घ्रचाहू करना यही मोहुरूपी निद्ा से जागना है ओर यह जगत एक समद्र जन्म मरण जश रोग चिन्ता आदिक जल करके मराहुबा हैं इस समुद्र का ।कंनार




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