सुखी होने की चाबी | Sukhi Hone Ki Chaabi
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
600 KB
कुल पष्ठ :
68
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
जयेश मोहनलाल सेठ - Jayesh Mohanlal Seth
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शैलेश पूनमचंद शाह - Shailesh Poonamchand Shah
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रस्तावना अनंत-अनंत काल से संसार सागर में भटकते जीव को. भगवान द्वारा कथित दुर्लभताओं (मनुष्यभव, आर्यक्षेत्र, उत्तम कुल, दीर्घ आयु, पूर्ण इन्द्रियाँ, नीरोगी शरीर, सच्चे गुरु, सच्चे शास्त्र, सच्ची श्रद्धा अर्थात् सम्यग्दर्शन और मुनिपना) में से शुरुआत की आठ दुर्लभताएँ हमें अनंत बार मिली हैं, तथापि अपने जीव की अर्थात् अपनी दिशा नहीं बदली। कोल्ह के बैल की तरह चारों गति में परिभ्रमण करते रहे परंतु पंचम गति अर्थात् मोक्ष के लिए प्रगति नहीं हुई। इसका कारण ज्ञानियों ने ऐसा बताया है कि आठ दुर्लभताएँ मिलने के पश्चात् यदि जीव नौवीं दुर्लभता न पाए अर्थात् आत्मअनुभव (स्पर्शना) न करे अर्थात् सम्यग्दर्शन न पाए तो संसार का फेरा मिटता नहीं अर्थात मोक्ष प्राप्त नहीं होता।
अत: यहाँ प्रस्तुत है 'सुखी होने की चाबी' आत्मा प्राप्त करने का एक अति वेधक, सचोट और सीधा इलाज। लेखक श्री जयेशभाई शेठ, व्यवसाय से चार्टड एकाउंटेंट हैं। उन्होंने अपने वर्षों के वांचन, चिंतन, मनन, अभ्यास और अनुभव को आचरण में लाने के पश्चात, इस मानव समाज के कल्याणार्थ करुणा से शास्त्रों के आधार से सनातन सत्य द्वारा आत्म प्राप्ति का सरल मार्ग दर्शाया है। कितने ही आगम पढ़ते हुए, पुस्तकें पढ़ते हुए, व्याख्यान सुनते हए मन में कितने ही प्रश्न उपस्थित हों, तब कभी अनेक मतों के कारण मूल सिद्धांत विस्मृत हो जाता है और विषयांतर तथा विवादों में मुख्य बात और समझ भुला दी जाती है। लेखक का यह एक उत्तम प्रयास है कि इस विश्व का प्रत्येक जीव, किस प्रकार सुखी हो, उसके शाश्वत सिद्धांतों
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