शिविर | Shivir
श्रेणी : आलोचनात्मक / Critique, साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
67
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
अशोक सुधांशु - Ashok Sudhanshu
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विनोद शाही - Vinod Shahi
जीवन परिचय
नाम : विनोद शाही
वर्तमान संपर्क : ए-563 , पालम विहार , गुरूग्राम -122017
मो: 09814658098 ई मेल: [email protected]
शिक्षा : एम ए हिंदी एवं अंग्रेज़ी , पीएच-डी
व्यवसाय : प्राचार्य / एसोसिएट प्रोफेसर ( सेवा निवृत्त ) :2008-12
जी जी एस राजकीय महाविद्यालय, जंडियाला ( पंजाब )
स्नातकोत्तर शिक्षण अनुभव: 25 वर्ष
डी ए वी कालेज जालंधर : 2 वर्ष ( 1978-1980 )
राजकीय महाविद्यालय होशियारपुर : 23 वर्ष ( 1986-2008 )
जन्म : जनवरी 1,1955 चरखी दादरी
सम्मान: रामविलास शर्मा आलोचना सम्मान , इलाहाबाद - 2010
राजस्थान राष्ट्रभाषा प्रचार समिति
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जैसी कविताएं सामने आ रहीं हैं, से अलग 'जैसी आनी चाहिएं' के संदर्भ में इस संकलन के नीति निदेशक तत्त्व निम्न हैं। (१) सारे विज्ञान के मूल में एक ही चरम सत्य है - अनुपात । यहां तक कि बुद्धि भी कुछ विशेष तत्त्वों के अनुपातिक रसायनिक संयोग की जटिल प्रक्रिया का नाम है । विज्ञान के जरिए उस अंतिम अनुपात की खोज का यल हो रहा है जिसके जरिए सारे ब्रह्माण्ड का एक निश्चित बिंदु पर समाहार हो सके। (२)जीवन के वायोलोजिकल विकास के साथ - जिस कर्मविधान का निर्देश किया गया है वह भी बौद्धिक दृष्टि से एक अन्य सिस्टम की अपेक्षा रखता है जो कर्म के प्रयोजन की अपेक्षा साबित करता रहे। देवी शक्तियों के विश्वास, धर्म मादि को छोड़ कर हम एक आधारहीन ब्रह्माण्ड में आ खड़े हुए हैं : अपने - अपने व्यक्तिगत सिस्टमों की तलाश में हैं। हर सिस्टम का अपना अनुपात और समाहार का बिंदु होता है। (६) कविता के जरिए हम सिस्टम की तलाश नहीं करते परन्तु सही कविता अपने पाप में एक पूर्ण सृष्टि होती है जिसमें अनुपात भी होता है समाहार का बिंदु भी। (४) सृष्टि में धूल के कग से पेड़, व्यक्ति आदि तक और धूल की जड़ता के निरंतर परिवर्तित होते प्राकार से ले कर पेड़ के उगने, व्यक्ति के विकसित होने प्रादि तक अत्यन्त जटिल प्रक्रियाएं पानुपातिक रसायनिक रूप
से संबद्ध हैं (५) कविता वस्तुगत होनी चाहिए (६) कविता को भाषा में सोचना होगा भाषा के साथ नहीं (७) कविता में अभिप्राय और ध्वनि शैली और कथ्य रसायनिक रूप से सम्बद्ध होने चाहिएं
अगस्त १९७५
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विनोद शाही
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