अणु से ईथर तक | Anu Se Ether Tak

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Anu Se Ether Tak by अशोक सुधांशु - Ashok Sudhanshuविनोद शाही - Vinod Shahi

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विनोद शाही - Vinod Shahi

जीवन परिचय

नाम :                विनोद शाही

वर्तमान संपर्क :    ए-563 , पालम विहार , गुरूग्राम -122017

मो: 09814658098 ई मेल: [email protected]

शिक्षा :             एम ए हिंदी एवं अंग्रेज़ी , पीएच-डी

व्यवसाय :         प्राचार्य / एसोसिएट प्रोफेसर  ( सेवा निवृत्त ) :2008-12

जी जी एस राजकीय महाविद्यालय,  जंडियाला ( पंजाब )

स्नातकोत्तर शिक्षण अनुभव: 25 वर्ष

डी ए वी कालेज जालंधर  : 2 वर्ष ( 1978-1980 )

राजकीय महाविद्यालय होशियारपुर : 23 वर्ष ( 1986-2008 )

जन्म :             जनवरी 1,1955 चरखी दादरी

सम्मान:         रामविलास शर्मा आलोचना सम्मान , इलाहाबाद - 2010

राजस्थान राष्ट्रभाषा प्रचार समिति

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सोचने की प्रक्रिया कुछ ऐसी है कि विचारों के भंवर का विवर धीरे-धीरे गहराता जा रहा है. परिधी लगातार तंग हो रही है. जिस लम्हे में गहराई सर्वाधिक होगी, विवर इतना तंग हो चुका होगा कि ऊपर से पूरी तरह छिद्र रहित सतह ही नजर पाएगी, विबर नष्ट ही हो गया होगा. सर्वाधिक गहराई को छूना और विवर का नष्ट होना, ये दोनों घटनाएं किसी एक ही लम्हे में घटित होती हैं-बिना किसी अंतराल के. ठीक यही वह लम्हा होता है जब विचार सप्राण होता है. जो है | जो उग रहा है जो बह रहा है उसे कविता भी नहीं बांधेगी क्योंकि बंधते ही सब झूठ हो जाएगा. बंधते ही उगना बंद कर देगा वह बंधते ही खो जाएगा बहना. इसलिए कविता कहना धोखा है छल कपट है हमारी भूठ हो गई जिंदगी के समांतर कुछ रचना है एक ही प्राश्वस्ति है जिंदगी के झूठ को काटने के लिए अभी कहना ही होगा एक झूठ और जोड़नी होगी बीमारी की पीड़ा में औषधि की कड़वाहट और.




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