एरण - एक सांस्कृतिक धरोहर | Eran - Ek Sanskritik Dharohar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
21.6 MB
कुल पष्ठ :
170
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
डॉ. मोहन लाल चढार का जन्म एक जुलाई 1981 ईस्वी में मध्यप्रदेश के सागर जिले में स्थित पुरातात्विक पुरास्थल एरण में हुआ। इन्होंने डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर मध्यप्रदेश से स्नातक तथा स्नातकोत्तर की उपाधि प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति तथा पुरातत्व विषय में उत्तीर्ण कर दो स्वर्णपदक प्राप्त किये तथा इन्हें डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर द्वारा गौर सम्मान से सम्मानित किया गया। इन्होंने भारतीय इतिहास, भारतीय संस्कृति तथा पुरातत्व विषय में नेट-जेआरएफ, परीक्षा उत्तीर्ण कर सागर विश्वविद्यालय से एरण की ताम्रपाषाण संस्कृति: एक अध्ययन विषय में डाक्टर आफ फिलासफी की उपाधि प्राप्त की तथा विश्वविद
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)आमुख
भारतवर्ष के हृदयस्थल सागर जिला मुख्यालय से 78 किलोमीटर दूर स्थित है एरण ग्रामप्राचीन एरिकिण, जिसे प्रारंभिक ऐतिहासिक काल के नरेशों क्रमशः इन्द्रगुप्त तथा धर्मपाल की राजधानी, शक-चत्रपों तथा गुप्तवंशी नरेशों की क्षेत्रीय राजधानी होने का गौरव प्राप्त है। सम्राट समुद्रगुप्त द्वारा उसके स्वभोग नगर एरिकिण में अवास, सम्राट बुधगुप्त के आधीन महाराज मातृविष्णु का एरण में निवास, सम्राट भानुगुप्त के सहयोगी राजा गोपराज का युद्ध में वीरगति प्राप्त करना प्रमाणित है, एरण में प्राप्त पुरालेखों द्वारा । गुप्त सेनापत्तियों महादण्डनायक सिंहनदि एवम् महादण्डनायक वहगल्लि की एरण उत्खनन व सर्वेक्षण में प्राप्त अभिलिखित मृण्मुद्राओं में एरण की चर्चा गुप्तकालीन राजकेन्द्र एरण के महत्व के परिचायक है। शक-त्रपों की मृण्मुद्राएँ एवम् मुद्रा-सांचे एरण उत्खनन में मिलें है। वस्तुतः उत्तर-पूर्व और पश्चिम में बीना नदी द्वारा प्रदत्त स्वाभाविक सुरक्षा तथा एरण की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति दीर्घकाल तक इसकी कीर्ति-समृद्धि के लिए उत्तरदायी रही है। प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति तथा पुरातत्व विभाग, डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर के पुरातत्त्ववेत्ताओं द्वारा 1960 से 1998 ई. तक विभिन्न सत्रों में किए गये सम्पन्न अनुसंधानों के फलस्वरूप एरण प्रतिष्ठित हुआ, अंतर्राष्ट्रीय ख्याति के पुरास्थल के रूप में। ताम्रपाषाण युग व गुप्तकाल में एरण राजकेन्द्र था। विशाल सुरक्षा प्राचीर-खाईद्वारा सुरक्षित इस नगर के उत्खनन में उपलब्ध स्वर्ण, हाथीदांत, तांबा एवम् अर्धकीमती पत्थरों के आभूषण-दैनिक उपयोगी वस्तुएँ, पत्थर के तौल, सुदृढ और आकर्षक मृदभाण्ड, तथा गुप्तकालीन विशालतम मूर्तियों, अभिलेख, सिक्के तत्कालीन समृद्धि तथा नगर की विशिष्ट स्थिति के सूचक है। एरण का व्यापारिक-सांस्कृतिक सम्बन्ध जल और थल मार्गो द्वारा अन्य तत्कालीन केन्द्रों से रहा है। डॉ. मोहनलाल लिखित प्रस्तुत ग्रंथ में एरण की सम्पूर्ण कला व संस्कृति का चित्रण हुआ है। एरण के उद्भव काल, आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक पक्ष, कला, तथा अन्य समकालीन संस्कृतियों से सम्पर्क का विस्तृत विवरण ग्रंथ में है। छायाचित्रों/रेखाचित्रों ने ग्रंथ की उपयोगिता में वृद्धि की है। सात अध्यायों में विभक्त यह कृति लेखक के परिश्रम, एवं अध्यवसाय का प्रतिफल है। प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्येता एवं जनमानस इस ग्रंथ द्वारा लाभान्वित होगें ऐसी मेरी शुभकामनाएँ है। महाशिरात्रि, 2016
प्रो. आलोक श्रोत्रिय
प्रोफेसर एवं अध्यक्ष प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति तथा पुरातत्व विभाग, एवं अधिष्ठाता, समाजविज्ञान संकाय तथा अकादमिक निदेशक इंदिरा गाँधी (जनजातीय) राष्ट्रीय विश्वविद्यालय अमरकटक
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