समाज, संस्कृति और झारखंड | Samaj Sanskrit Aur Jharkhand
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
76
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
नाम - ईश्वरी प्रसाद
जन्म - 29.12.1938,
गाँव - टेरो पाकलमेड़ी, बेड़ो, राँची
परिजन - माता-फगुनी देवी, पिता- दुखी महतो, पत्नी- दुलारी देवी
शिक्षा - मैट्रिक; बालकृष्णा उच्च विद्यालय, राँची, 1952
आई० ए०; संत जेवियर कालेज, रॉची, 1954-1955
बी० ए०; संत कोलम्बस कालेज, हजारीबाग, 1956-1957
व्यवसाय - शिक्षक; बेड़ो उच्च विद्यालय, 1958-1959, सिनी उच्च विद्यालय, 1960
पशुपालन विभाग, चाईबासा, 1961, राँची, 1962-1963 मई 1963 से एच० ई० सी०, 1992 में सहायक प्रबंधक के पद से सेवानिवृत
विशेष योगदान --
राजनीतिक -
• एच० ई० सी० ट्रेड यूनियन में सीटू और एटक का महासचिव
• अंतर्राष्ट्रीय सेमीनार, चेकोस्लोवाकिया में ट्रेड
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पिछले 52 वर्षों में सैकड़ों राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक कार्यकर्ताओं एवं गुरुजनों के साथ काम करने का मुझे सौभाग्य प्राप्त हुआ है। झारखण्ड का मूल प्राण क्या है, इसकी सांस्कृतिक विरासत क्या है, हमलोगों के बीच हमेशा यह मंथन का विषय रहा है। झारखण्ड में जो नहीं है, उसे देखने और गढ़ने का प्रयास तो नहीं हो रहा है? हजारों वर्ष पुरानी संस्कृति के अविरल धारा के साथ खिलवाड़ तो नहीं किया जा रहा है और सुनियोजित ढंग से झारखडियों की अस्मिता को मिटाने का प्रयास तो नहीं किया जा रहा है? यह हम लोगों के लिए चिन्ता का विषय बना रहा। अपने समाज को समझने और चिन्ताओं के निराकरण के लिए न जाने कितने सेमीनारों, कार्यशालाओं तथा बैठकों का आयोजन किया गया। उन सबों का आकलन करना कठिन है। इसके साथ अनेक लेखों, गीतों, कविताओं, पत्रिकाओं और पुस्तकों का प्रकाशन होते रहा है। आज डॉ० बी० पी० केशरी, डॉ० राम दयाल मुण्डा, प्रफुल्ल कुमार राय, राम सहाय महतो, जगतमनी महतो, भरत नायक, शेख डोमन अली, बालचंद केशरी, ए० के० झा, शेखावत अली, बी० पी० चतुधूरी, शारदा प्रसाद शर्मा, चुन्नी लाल नायक, बहादुर मिस्त्री, लाल रणविजय नाथ शाहदेव आदि हमारे बीच नहीं रहें। लेकिन वे अपनी अमूल्य योगदान व कृतियाँ छोड़ गये हैं।
छाया के समान हम एक दूसरे के साथ रहें। उनकी मृत्यु तिथि पर श्रद्धा के सुमन अर्पित कर एवं संवेदना प्रकट कर हम उऋण नहीं हो सकते हैं। जीवन-चक्र के समान, समाज में मंथन-चिंतन अविरल रूप से चलता रहता है। पूर्वजों के समान, समाज एवं संस्कृति के प्रति अपने कर्तव्यों का अविरल निर्वहण ही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी। मेरी यह कृति उन सभी को समर्पित है।
संघर्ष के साथी रहे महाबीर नायक, मुकुन्द नायक, मधु मंसूरी, क्षितीज कुमार राय, दिगेश्वर ठाकुर, बिमल उराँव, डिम्बो पहान, आर. पी. सिंह, रामकुमार नायक, सी० डी० सिंह, डॉ० राम प्रसाद...... को भी आभार।
सामाजिक और सांस्कृतिक कार्यों के निर्वहण के दौरान, मैंने अनुभव किया है कि सामान्य जनता अपनी जीविकोपार्जन के लिए कठोर श्रम में लगे रहने तथा समयाभाव में, जातियों की असामान्य संरचना, समाज-विकास आदि के भौतिक और ऐतिहासिक भूमिका पर शायद ही उचित ध्यान दे पाते हैं। फलस्वरुप परम्परागत रीति-रिवाज, सुनी-सुनाई बातें, किस्सा-कहानियों, रेडियों, दूरदर्शन में प्रसारित समाचार, जुलूस, प्रदर्शन में नेताओं के वक्तव्य आदि, उनके मन-मतिष्क में मुख्य स्थान ग्रहण कर लेते हैं। इसका परिणाम होता है कि भगवान ने उनके मानस में जो विवेक जैसी अनुपम शक्ति प्रदान किया है, उसका उपयोग करने से ही वे वंचित रह जाते हैं।
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