अमरकंटक क्षेत्र का पुरावैभव | Amarkantak Kshetra Ka Puravaibhav
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
57 MB
कुल पष्ठ :
139
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
डॉ. मोहन लाल चढार का जन्म एक जुलाई 1981 ईस्वी में मध्यप्रदेश के सागर जिले में स्थित पुरातात्विक पुरास्थल एरण में हुआ। इन्होंने डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर मध्यप्रदेश से स्नातक तथा स्नातकोत्तर की उपाधि प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति तथा पुरातत्व विषय में उत्तीर्ण कर दो स्वर्णपदक प्राप्त किये तथा इन्हें डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर द्वारा गौर सम्मान से सम्मानित किया गया। इन्होंने भारतीय इतिहास, भारतीय संस्कृति तथा पुरातत्व विषय में नेट-जेआरएफ, परीक्षा उत्तीर्ण कर सागर विश्वविद्यालय से एरण की ताम्रपाषाण संस्कृति: एक अध्ययन विषय में डाक्टर आफ फिलासफी की उपाधि प्राप्त की तथा विश्वविद
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्राचीन काल से भारतीय साहित्य व पुरातत्व में अमरकंटक क्षेत्र का उत्कृष्ट स्थान रहा है। स्कन्दपुराण के रेवाखण्ड में इस क्षेत्र के धार्मिक व सांस्कृतिक महत्व का वर्णन मिलता है। प्रागैतिहासिक काल से लेकर ऐतिहासिक काल तक इस क्षेत्र में मानव की विभिन्न दैनिक गतिविधियों के प्रमाण मिले है। अमरकंटक समुद्र तल से 1065 मीटर की ऊंचाई पर विन्ध्याचल व सतपुडा पर्वत श्रेणी को जोड़ने वाली पर्वत श्रृंखला मेखला पर स्थित है। अमरकंटक ऊँचे पर्वतों, घने जंगलों, मंदिरों, गुफाओं व जलप्रपातों से समृद्ध रमणीक स्थल के साथ प्राचीन धार्मिक पुरास्थल भी है। पुराणों की मान्यतानुसार इस पर्वत को महारुद्र मेरु कहा गया है। वाणभट्ट ने इसे चन्द्रपर्वत कहा है। लोक मान्यता के अनुसार भगवान शिव व पर्वती इस रमणीय स्थान पर निवास करते है। अमरकंटक से उदय होने वाली युगों युगों से पूजित नर्मदा नदी मानव सभ्यता, संस्कृति और परम्परा की प्रवाहिका रही है। वह भारतीय संस्कृति का एक चिरन्तन और अविच्छिन्न प्रवाह मानी जाती है। ऋषियों, मुनियों, सिद्धों, साधकों व योगियों ने आत्मिक भावना से युक्त वाणी व श्रद्धापूर्वक लेखनी से लोक कल्याणदायिनी, पापमोचनी, महाकल्पों की साक्षी व त्रिपथगामिनी नदी नर्मदा को जनमानस में माँ नर्मदा के रुप में तथा मेकल पर्वत को श्रेष्ठतम् सप्तकुल पर्वतों में प्रतिष्ठित किया है। महाभारत काल में अमरकंटक क्षेत्र व नर्मदा को तीर्थ का पद मिल चुका था। महाभारत के अनुशासन पर्व 26/48 के अनुसार नर्मदा में स्नान करने एवं संयमित बिताने से एक पखवाड़ें में मनुष्य राजा तुल्य हो जाता है। महाभारत में शोण व नर्मदा की उत्पत्ति मेकल पर्वत श्रेणी के वंशगल्म अर्थात बांसो के कजों से बताई गई है। वशिष्ठ संहिता के अनुसार नर्मदोत्पत्ति की कथा वशिष्ठ ने राम से कही थी, इस ग्रन्थ के अनुसार नर्मदा की उत्पत्ति माघ शुक्ल सप्तमी, अश्वनी नक्षत्र, रविवार के दिन मकर राशि में सूर्य के स्थित रहने पर मध्याहन काल में पृथ्वी पर अर्थात अमरकंटक की पावन धरा मेकल पर्वत पर उल्लेखित है। इस प्रकार के उल्लेख नर्मदा नदी के पुण्यातिशायी स्वरुप को इंगित करते हैं। अमरकंटक से नर्मदा, सोन व जोहिला का उद्गम हुआ है। मेकल कन्या या मेकलसुता नर्मदा के नाम है। मेकल को मेखला भी कहा जाता है यह विन्ध्य की पर्वत श्रेणी है। पौराणिक मान्यतानुसार मेकल, विन्ध्य का पुत्र है। मेकल पर्वत के अन्तःस्थल से उदभूत, भूमिगत खनिजों तथा वनौषधियों से पोषित मों नर्मदा का जल अमृत है। नर्मदा भारत की सात प्रमुख पवित्रतम् नदियों में से एक है, जिसकी परिक्रमा की जाती है। नर्मदा परिक्रमा अमरकंटक से प्रारम्भ होकर यही पर खत्म होती है। नर्मदा की कुल लम्बाई 1,312 कलोमीटर है। अमरकटंक क्षेत्र में नर्मदा अपने उद्गम से 83 किलोमीटर तक पश्चिम तथा उत्तर पश्चिम दिशा में बहती है। प्राचीन लेखकों व कवियों ने अमरकंटक क्षेत्र को काव्यात्मक ललितशैली में अनेक ग्रन्थों में आबद्ध किया है। इस क्षेत्र का श्रृंगारिक चित्रण साहित्य में कही पर पूर्ण रुप से तो कही पर आंशिक रुप में हुआ है। महार्षि वाल्मीकि ने विक्य के मेकल शिखर को बादलों में समाविष्ट होने के साथ साथ स्वर्ग के सदृश्य सुशोभित बताया है। अमरकंटक क्षेत्र में अनेक दुलर्भ औषधियों का भण्डार है। अमरकंटक क्षेत्र अनेक अनुसंधानकर्ताओं ऋषि मुनियों व योगियो की शरणस्थली रहा है। इस क्षेत्र की विविधता, विलक्षणता, उदारता एवं आरण्य स्वरुप इसके सौन्दर्य एवं पावनत्व के मूल कारण है। अमरकटंक में स्थित कपिलधारा जलप्रपात, दूधधारा जलप्रपात शम्भूधारा जलप्रपात, सोनमुडा जलप्रपात व लक्ष्मणधारा जलप्रपात प्राकृतिक सौन्दर्य का अनुपम उदारहरण है। इस क्षेत्र में अनेक कलचुरीकालीन वैष्णव, शाक्त, गाणपत्य, शैव तथा जैन धर्म से संबंधित मंदिर व मूर्तियों प्राप्त हुई है। अमरकंटक क्षेत्र में किये गये पुरातात्विक सर्वेक्षों में अनेक मौर्यकालीन, गुप्तकालीन व कलधुरीकालीन पुरावशेष मिले है। इस क्षेत्र से अनेक कलधुरीकालीन नर्मदा प्रतिमाएँ अमरकण्टक, व कुकर्रामट से प्राप्त हुई है। शिवपुराण में अमरकण्टक के लिए ओकारममरकण्टके शब्द प्रयुक्त हुआ है इससे स्पष्ट है कि शिय के साथ अमरकण्टक व नर्मदा का घनिष्ट सम्बन्ध रहा है इसी कारण 'नर्मदा के साथ इस क्षेत्र में लोग 'हर अर्थात शिव मिलाकर साथ में "नर्मदे-हर बोलते है। कूर्मपुराण का कथन है कि अमरकण्टक पर्वत की प्रदक्षिणा करने वाले व्यक्ति को पुण्डरीक
User Reviews
No Reviews | Add Yours...