श्री वर्धमान स्तोत्र (संस्कृत एवं हिंदी ) | Shri Vardhman Stotra (Sanskrit aur Hindi)

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Shri Vardhman Stotra (Sanskrit aur Hindi) by मुनि श्री प्रणम्यसागर जी - Muni Shri Pranamya Sagar Ji

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मुनि श्री प्रणम्यसागर जी - Muni Shri Pranamya Sagar Ji

महाकवि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के शिष्य समुदाय में से एक अनोखी प्रतिभा के धनी, संस्कृत, अंग्रेजी, प्राकृत भाषा में निष्णात, अल्पवय में ही अनेक ग्रंथों की संस्कृत टीका लिखने वाले मुनि श्री प्रणम्य सागर जी ने जनसामान्य के हितकारी पुस्तकों को लिखकर सभी को अपना जीवन जीने की एक नई दिशा दी है। मुनि श्री प्रणम्य सागर जी ने भगवान महावीर के सिद्धांतों को गहराई से चिंतन की कसौटी पर कसते हुए उन्हें बहुत ही सरल भाषा में संजोया है, जो कि उनके ‘गहरे और सरल’ व्यक्तित्व को प्रतिबिम्बित करती है।
मुनि श्री का लेखन अंतर्जगत की संपूर्ण यात्रा का एक नेमा अनोखा टिकिट है जो हमारे अंतर्मन को धर्म के अनेक विष

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रस्तावना पूज्य 108 मुनि प्रणम्यसागरजी द्वारा रचित श्री वर्धमान स्तोत्र 64 छन्दों में निबद्ध संस्कृत भाषा का सचमुच एक प्रणम्य काव्य है। मुनिश्री के लिए काव्य रचना अपने आप में कोई इष्ट नहीं है। वह तो एक साधन भर, एक बहाना भर है, जो मुनि को मोक्षमार्ग पर चलने की प्रेरणा देने वाले तीर्थंकर भगवान महावीर से जोड़ता है। मुनि में महावीर जैसा बनने की भावना जगाता है। जो संस्कृत भाषा को ठीक तरीके से नहीं समझते उनके लिए मुनिश्री ने श्री वर्धमान स्तोत्र का पद्यानुवाद हिन्दी में भी किया है। जैन धर्म में जैन मुनि रचनाकारों द्वारा स्तोत्र रचना की एक लम्बी परम्परा है। आचार्य समन्तभद्र का स्वयंभू स्तोत्र और आचार्य मानतुंग का भक्तामर स्तोत्र इस परम्परा की उल्लेखनीय रचनाएँ हैं। किन्तु कुछ समय से यह परम्परा विच्छेद जैसी | स्थिति को प्राप्त हो गई थी। संस्कृत भाषा में रचना तो बड़ी ही कठिन लगने लगी थी यहाँ तक कि पढ़ने-लिखने में भी इस भाषा का उपयोग कम एवं कठिन हो गया। ऐसे समय में मुनि श्री प्रणम्य सागरजी ने अपने काव्य कौशल से उपमा, रुपक, अतिशयोक्ति, अनुप्रास आदि अलंकारों का प्रयोग कर श्री वर्धमान स्तोत्र की रचना की। यह हमारे पुण्य का ही उदय है कि जैन धर्म के प्रमुख स्तोत्रों की रचना मालवा प्रान्त की भूमि पर हुयी हैं। जैसे भक्तामर स्तोत्र की रचना धार में और कल्याण मंदिर स्तोत्र की उज्जैन में हुयी। उसी तारतम्य में समाधि तंत्र जैसे ग्रन्थों की संस्कृत भाषा में टीका करने वाले पू. मुनिश्री प्रणम्य सागरजी महाराज द्वारा शासन नायक भगवान महावीर के गुणों को कहने वाला और दिगम्बर सम्प्रदाय के स्तोत्रों में शासन नायक के नाम से प्रथम स्तोत्र श्री वर्धमान स्तोत्र की रचना रतलाम में सम्पन्न हुई। जैन धर्म में अरिहन्तों-तीर्थंकरों की चौंसठ ऋद्धियाँ होती हैं। उन्हीं ऋद्धियों का कथन करते हुए श्री वर्धमान स्तोत्र 64 छन्दों में निबद्ध है। इस स्तोत्र का प्रत्येक | छन्द स्वयं में ही एक ऋद्धि मंत्र है। श्री वर्धमान स्तोत्र की रचना श्री वर्धमान स्वामी




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