खोजो मत, पाओ | Khojo Mat, Paao

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मुनि श्री प्रणम्यसागर जी - Muni Shri Pranamya Sagar Ji

महाकवि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के शिष्य समुदाय में से एक अनोखी प्रतिभा के धनी, संस्कृत, अंग्रेजी, प्राकृत भाषा में निष्णात, अल्पवय में ही अनेक ग्रंथों की संस्कृत टीका लिखने वाले मुनि श्री प्रणम्य सागर जी ने जनसामान्य के हितकारी पुस्तकों को लिखकर सभी को अपना जीवन जीने की एक नई दिशा दी है। मुनि श्री प्रणम्य सागर जी ने भगवान महावीर के सिद्धांतों को गहराई से चिंतन की कसौटी पर कसते हुए उन्हें बहुत ही सरल भाषा में संजोया है, जो कि उनके ‘गहरे और सरल’ व्यक्तित्व को प्रतिबिम्बित करती है।
मुनि श्री का लेखन अंतर्जगत की संपूर्ण यात्रा का एक नेमा अनोखा टिकिट है जो हमारे अंतर्मन को धर्म के अनेक विष

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अपनी बात सूत्र वाक्य छोटे होते हैं लेकिन उनका निर्माण बड़े अनुभवों के आधार पर होता है। महान् पुरुषों ने जो कुछ भी कहा सूत्रात्मक ही कहा। सूत्र वाक्य ही सूक्तियाँ कहलाती हैं। चिन्तन से सूत्रों का अर्थ खुलता है। धर्म के अन्तिम संचालक, तीर्थ के प्रवर्तक, चौबीसवें तीर्थंकर भगवान् महावीर स्वामी हुए हैं। यद्यपि वह मुख्यतया आत्मज्ञ थे, अपने निजानन्द में लीन रहते थे, फिर भी वह सर्वज्ञ थे। सर्वज्ञ होने के मायने दूसरों को सही ढंग से जानना है। भगवान् महावीर स्वामी ने उपदेशों में आत्म कल्याण के साथ-साथ विश्व कल्याण का मार्ग भी बताया। 'जियो और जीने दो' उनका प्राणिमात्र के कल्याण का अमर सन्देश है। अहिंसा' उनका सार्वभौमिक दिव्यास्त्र है जिसके प्रयोग से विश्वशान्ति की रूपरेखा आज भी प्रासंगिक है। यह अहिंसा ही वह दिव्य शक्ति है जिसके बल पर महात्मा गांधी ने भारत को आजाद कराया। महात्मा गांधी ने अहिंसा का व्यावहारिक प्रयोग भरपूर किया। गांधी जी ने अहिंसा जैन दर्शन से ही अपनाई थी। महावीर स्वामी के वचनामृत आध्यात्मिक उन्नति के लिए गहरे सोपानों का निर्माण करते हैं। विश्व के हित के लिए उन्होंने ऐसे सन्देश दिये हैं जिन पर चलकर हम अपना ज्ञान और अनुभव दोनों वृद्धिंगत कर सकते हैं। कृति में उनके द्वारा प्रदत्त एक ऐसे ही सूत्र की व्याख्या की गई है। भगवान् महावीर के मुख्य शिष्य गौतम गणधर ने एक जिज्ञासा व्यक्त की। उन्होंने प्रश्न किया कि




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