प्राकृत रचना भास्कर एवं प्राकृत शब्दकोश | Prakrit Rachna Bhaskar evam Prakrit Shabdakosh (Prakrat Dictionary)
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm, पौराणिक / Mythological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
800 KB
कुल पष्ठ :
172
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
महाकवि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के शिष्य समुदाय में से एक अनोखी प्रतिभा के धनी, संस्कृत, अंग्रेजी, प्राकृत भाषा में निष्णात, अल्पवय में ही अनेक ग्रंथों की संस्कृत टीका लिखने वाले मुनि श्री प्रणम्य सागर जी ने जनसामान्य के हितकारी पुस्तकों को लिखकर सभी को अपना जीवन जीने की एक नई दिशा दी है। मुनि श्री प्रणम्य सागर जी ने भगवान महावीर के सिद्धांतों को गहराई से चिंतन की कसौटी पर कसते हुए उन्हें बहुत ही सरल भाषा में संजोया है, जो कि उनके ‘गहरे और सरल’ व्यक्तित्व को प्रतिबिम्बित करती है।
मुनि श्री का लेखन अंतर्जगत की संपूर्ण यात्रा का एक नेमा अनोखा टिकिट है जो हमारे अंतर्मन को धर्म के अनेक विष
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)आत्मकथ्य / पाथेय
जैन परम्परानुसार अक्सर्पिणी काल के इस पंचम युग में जहाँ एक ओर भौतिक एवं वैज्ञानिक सम्पन्नता का दिग्दर्शन हो रहा है, वहीं अशान्त एवं आक्रान्त मानव समाज कर्तव्यों एवं मूल्यों से विमुख होता जा रहा है। आवश्यकता इस बात की है कि समाज में मुल्यों की स्थापना हो, वैयक्तिक एवं आध्यत्मिक स्तर पर मानवता का विकास हो, अशांत समाज के लिए आर्षपुरूषों की वाणी का सदुपयोग करने का अवसर मिले। आज जिन शासन में महावीर की देशना फलित हो रही है। उनकी वाणी आगम के रूप में विद्यमान है। हम सभी उस आगम रूप जिनवाणी का स्वाध्याय करके आत्मकल्याण कर सकें, यही मंगल कामना है।
आज महावीर की देशना जिन आगम ग्रन्थों के रूप में प्राप्त हो रही है उनका स्वाध्याय एवं अध्ययन भाषा की दुरूहता के कारण सम्भव नहीं है। प्राकृत भाषा में रचित इन आगमों के अध्ययन एवं स्वाध्याय के लिए प्राकृत भाषा की प्रारम्भिक जानकारी आवश्यक है इसी उद्देश्य को लेकर प्राकत विद्या पाठ्यक्रम का निर्माण किया गया है। जोकि 'प्राक़त रचना भास्कर' नाम से पाठकों के हाथ में उपलब्ध है। जिसके माध्यम से जनसामाय एवं जिन-उपासकों के अन्दर भाषा की जानकारी के साथ-साथ स्वाध्याय की प्रवृत्ति बढ़ सकेगी। इसी उद्देश्य को लेकर सामाजिक स्तर पर पारिवारिक स्तर पर और वैयक्तिक स्तर पर स्वाध्याय की रूचि जाग्रत की जा सके, जगह-जगह प्राकृत विद्या पाठशाला स्थापित की जा रही है। इस पाठशाला के निमित्त से प्राकृत भाषा की जानकारी के लिए रचित इस कृति में क्रमशः प्राकृत के संज्ञा-सर्वनाम शब्दों के विभक्ति रूप, क्रियापदों के धातुरूपों और प्राकृत के सामान्य नियमों की जानकारी तथा प्राकृत अभ्यास रचना के प्रयोग प्राकृत विद्या पाठ्यक्रम में दिये गये है। स्वाध्याय की प्रवृत्ति को प्रोत्साहित करने के निमित्त से इस कृति के अन्त में आचार्य नेमिचन्द्र द्वारा रचित द्रव्यसंग्रह की प्रारम्भिक 14 गाथाओं का
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