भ्रूण | Bhroona

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सुनील जाधव - Sunil Jadhav

'नाम : डॉ.सुनील गुलाबसिंग जाधव
१.जन्म: ०१/०९/१९७८ २.शिक्षा : एम.ए.{ हिंदी } नेट, पीएच.डी
३.कृतियाँ:
{अनुवाद): १.सच का एक टुकड़ा [ नाटक]
(कविता): १.मैं बंजारा हूँ २.रौशनी की ओर बढ़ते कदम ३.सच बोलने की सजा
(कहानी): १.मैं भी इन्सान हूँ २.एक कहानी ऐसी भी ३.गोधड़ी {शोध); १.नागार्जुन के काव्य में व्यंग्य २.हिंदी साहित्य विविध आयाम ३.हिंदी साहित्य :दलित विमर्श
४.विधारा
५.मेरे भीतर मैं
{एकांकी) १.भ्रूण [कन्नड़ तथा मराठी में अनुवाद] २.कैची और बंदूक ३.अमरबेल
४.संशोधन: १.नागार्जुन के काव्य में व्यंग्य का अनुशीलन २.विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं में लगभग पचास आलेख प्रकाशित
५.अलंकरण एवं पुरस्कार : १.अंतर

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका कभी मन में विचार आता है कि आखिर कवि/लेखक रचना का सृजन क्यों करते हैं, बरबस सुमित्रानंदन पंत की यह पंक्तियाँ याद आती हैं। वियोगी होगा पहला कवी, आह से उपजा होगा गान। उमडकर आँखोसे चुपचाप, बही होगी कविता अन्जान। डॉ. सुनील जाधव के विषय में भी यह सटीक बैठती हैं । 'भ्रण' एकांकी, कन्या भ्रूण हत्या से आहत डॉ. सुनील जाधव के द्वारा सामाजिक विसंगतियों के विरोध में एक मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति हैं। लेख, कविता, कहानी पाठकों से संवाद का एक सशक्त माध्यम है परन्तु एकांकी निश्चित ही एक कदम आगे है, इसमें पाठकों से संवाद मात्र शब्दों तक सीमित नहीं रहता वरन् प्रत्येक संवाद, पात्र के जरिये उनके हदय की गहराई तक उतरता हैं। वह पाठक ही नहीं दर्शक बन नाटक के पात्रों के साथ संवाद करता है, उनकी संवेदनाओं को बांटता है, जिसका प्रत्यक्ष प्रभाव उनके मन-मस्तिष्क पर पड़ता हैं। आधुनिक समाज में कन्या भ्रूण हत्या की घिनौनी मानसिकता को बदलने के उद्देश्य से लिखे गये एकाकी भ्रूण में, डॉ. सुनील जाधव ने मादा भ्रूण की हत्या एवं बेटियों के प्रति पूर्वाग्रह से ग्रसित भेदभाव की ज्वलन्त समस्या को दर्शाया है । उनके एकांकी में समाज की संकीर्ण सोच एवं कुरीतियों से उपजे बेटी के हर दर्द को महसूस किया जा सकता हैं। एकांकी का हर संवाद समाज के लिए एक प्रश्न छोडता है और समाज की रूढियों एवं कुप्रथाओ पर प्रश्नचिन्ह लगाता प्रतीत होता है।




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