मानस बोध | Manas Bodh

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Manas Bodh by गंगाधर सीताराम अभंग - Gangadhar Sitaram Abhang

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आ आ सा द चज भः ट र ब ” र ह र च बिगी टर ” (१०) 1 जयासी रुचेना मना सद्य गोड़ ॥ २८ ः ॥ मना सर्वदा मिष्ट बागी द्दे दो ॥ 1 परा नादि लावूनियां दु:ख देतो ॥ ॥ करा मित्र ह्योवोनियां हेतु भंग || ॥ असत्याय' तो) काय ज्याचा अभंग || २९ ॥ अशा दुभती मोड जाही फसावे ॥ । ॥ करोनी सना आत्म-हानी बसावे ॥ )| मना दुर्जनांचा घडाश् न संग || ॥ धरी मागं ऐसा न यावा प्रसंग ॥ ३० ॥ ज़ र च क भक 2 च मै जयाचे नियोग माति भ्रष्ट होते ॥ ५ धनाची वपूची सदा हाने हो-ते ॥ ॥ ञशाः दुर्जनाचा नको संग बापा ॥ 1 सिऊनी रहावे तया जवे सापा ॥ ३१ ॥




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