एक कहानी ऐसी भी | Ek Kahani Aisi Bhi
श्रेणी : लघु कथा / Short story
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
250 KB
कुल पष्ठ :
36
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
'नाम : डॉ.सुनील गुलाबसिंग जाधव
१.जन्म: ०१/०९/१९७८ २.शिक्षा : एम.ए.{ हिंदी } नेट, पीएच.डी
३.कृतियाँ:
{अनुवाद): १.सच का एक टुकड़ा [ नाटक]
(कविता): १.मैं बंजारा हूँ २.रौशनी की ओर बढ़ते कदम ३.सच बोलने की सजा
(कहानी): १.मैं भी इन्सान हूँ २.एक कहानी ऐसी भी ३.गोधड़ी {शोध); १.नागार्जुन के काव्य में व्यंग्य २.हिंदी साहित्य विविध आयाम ३.हिंदी साहित्य :दलित विमर्श
४.विधारा
५.मेरे भीतर मैं
{एकांकी) १.भ्रूण [कन्नड़ तथा मराठी में अनुवाद] २.कैची और बंदूक ३.अमरबेल
४.संशोधन: १.नागार्जुन के काव्य में व्यंग्य का अनुशीलन २.विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं में लगभग पचास आलेख प्रकाशित
५.अलंकरण एवं पुरस्कार : १.अंतर
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)एक लंबी आवाज जो सह न सकी, सुप्रिया की मरणांतक पीड़ाओं को। गंगूबाई ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा था, “साहेब, धीरज धरो, कुछ नहीं होगा। गणपती बप्पा हमारे साथ हैं। मेरा गणपती बप्पा कुछ नहीं होने देगा। मेरी मालकिन टनटन होकर बच्चे को लेकर बाहर आयेंगी देखना...." गंगूबाई अभिजीत के घर काम करने वाली बाई थी। सुप्रिया से बहन जैसा प्यार पाकर वह धन्य हो गई थी। उसका हर पल हर सुख-दुःख में साथ रहता था। सुप्रिया और अभिजीत ने उसपर कई उपकार किए थे। यही कारण था कि गंगूबाई अपनी सुप्रिया बहन के लिए अस्पताल आयी हई थी। जो अभिजीत को धीरज बंधा रही थी। जब डॉक्टर ने यह कहा कि दोनों में से कोई एक बच सकता है, तब उसके पैरों तले की जमीन खिसक गई थी। अचानक सब कुछ रुक गया था। और फिर वह महसूस करने लगा था कि सारी ध रती गोल घूम रही है। सप्नों को ऐसा चकनाचर होते हए देख वह डॉक्टर से बिनती करने लगा था। अब उसके लिए डॉक्टर ही भगवान का रूप था। अभिजीत ने डॉक्टर के सामने गिड़गिड़ाते हुए कहा था, "नहीं, नहीं ऐसा नहीं हो सकता। प्लीज डॉक्टर साहब दोनों को बचा लीजिए। मैं अपनी पत्नी से बेहद प्यार करता हूँ। मैं उसके बिना नहीं जी सकता।" डॉक्टर ने अपनी मजबूरी को साफ-साफ बयान किया था कि वह कुछ नहीं कर सकता। पर अभिजीत मानने के लिए तैयार ही नहीं था। उसके बस में होता तो वह ब्रह्मा जी के विधान को बदलवा देता। पर वह ईश्वर पर यकीन भी तो नहीं करता था। उसकी नजरों में तो ईश्वर मर चुके थे। इसीलिए हम ईश्वर की प्रतिमा के सम्मुख दीए लगाते हैं और माला पहनाते हैं। ईश्वर तो इन्सानों में बसा है। डॉक्टर में बसा है। इस धरती का यदि कोई ईश्वर था तो वह सिर्फ डॉक्टर ही था। जो मरते हुए लोगों को जीवनदान देता है। वह डॉक्टर के सामने और भी बिनती करते हुए कहने लगा था, "ऐसा नहीं कहिये साहब ! चाहे जितना भी खर्चा आये मैं देने के लिए तैयार हूँ। उन्हें बचा लीजिए. डॉक्टर साहब उन्हें बचा लीजिए....." अभिजीत गिड़गिड़ा रहा था पर डॉक्टर अपनी असमर्थता बता रहे थे। डॉक्टर का न मानता हुआ देख, वह उसके पैरों में पड़ गया था। पैरों को पकड़कर वह कहने लगा था, "मैं आपके पाँव पड़ता हूँ। पर उसे बचा लीजिये।" डॉक्टर अभिजीत की दशा को देखकर तैयार हो गया था। उसके बस में तो कुछ नहीं था। सिवाय कोशिश करने के अलावा उसके पास दूसरा कोईमार्ग नहीं था। पैरों पर पड़े अभिजीत को उठाते हए डॉक्टर ने कहा था, "उठ अभिजीत, जीवनदाता तो वह भगवान है, सबसे बड़ा डॉक्टर ! आप उनसे प्रार्थना कीजिये कि मैं दोनों को बचा पाऊँ। मैं चलता हूँ।" कहते हुए डॉक्टर भीतर चला गया था। इस दौरान सुप्रिया की रह-रह कर दर्दनाक चीखें निकल रही थीं। अभिजीत निर्गुण ईश्वर भक्त था। वह बाहर खड़ा निर्गुण ईश्वर से प्रार्थना कर रहा था कि वह सुप्रिया और बच्चे दोनों को सही सलामत रखें।
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