भजन संग्रह | Bhajan Sangarah Ac.1510

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Bhajan Sangarah Ac.1510 by वियोगी हरि - Viyogi Hari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ #- भजन पृष्ठ संख्या बिनु गुपाल बेरिन भई ढुंजें (लीला) १६७ भगति बिनु बैल बिराने हेहो... (चेतावनी) ? २० भजन बिनु कूकर सूकर जैसो.. (. है ३० भजु मन चरन संकटहरन (विनय) २१४ मधुकर ! इतनी कहियहु जाइ (लीला) १५१, सघुकर स्याम हमारे चोर (५५ ये रेप मनों हों ऐसे ही मरि जेहों (, ) १६२ माधव ! मोहि काहेकी लाज !?... (विनय) ११% मेरो माई ऐसो हठी बालगोबिंदा (लीला) १५२ मैया मोरी; मैं नहिं माखन खायों. ( ) ६ मैया कबहिं बढ़ेगी चोटी ५९ मैया मोहिं दाऊ बहुत खिज्ायों ( ) 7 मैया री मोहिं माखन भावे (, . १५४ मो देखत जसुमति तेरे ढोटा (, ) मोसम कौन कुटिल खल कामी .. (देन्य) १२९ मोसम पतित न और गुसाई ! (चेतावनी) १४० मोहन इतनी मोहिं चित घरिते (प्रेम) १७५ मोहि प्रमु तमसों होड़ परी (2) १७९ रुक्मिनि मोहिं ्रज बिसरत नाहीं .. (लीला) १७० रे मन; कृष्णनाम कहि छीजे (नाम) ९२ रे मन जनम पदारथ जात (चेतावनी) १२१




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