हिंदी अबिनव्भारती | Hindi Abinawbharti

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Hindi Abinawbharti by डॉ. नगेन्द्र - Dr.Nagendra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१० गिनाए गए हैं। झभिनवगुप्तका सत है कि ये ग्यारह अडद्ध मरतके मतसे नही भ्रपितु कोहलके मतसे दिखलाए गए हें । उन्होंने लिखा है-- प्रनेन तु दलोकेन कोहलमतेन एकाददाजूत्वसुच्यते । न तु भरते । इसी प्रकार भय शभ्रनेक स्थलोपर श्रभिनवगुप्तने भरतमुनिके मतसे कोहलाचायंके मत की भिननता दिखलाते हुए कोहलाचायेंके नामका उल्लेख किया है । इससे यह स्पष्ट प्रतीत होता हैं कि भरतमुनिके पुर्ववर्ती कोहलाचायंका श्रपना कोई स्वतन्त्र ग्रन्थ था उसीके झ्राधारपर झभिनवगुप्तने उनके मतका इतना स्पष्ट और इतना अधिक उल्लेख श्रपने गन्थमें किया है । श्रभिनवगुप्तने केवल कोहलके मतका झपने शब्दोमें ही उल्लेख किया हो सो बात नहीं है बल्कि स्वयं कोहलाचायेंके इलोकोको उन्होंने कई जगह उद्धृत किया है। जसे चतुधे भ्रध्यायमें बड़ौदा वाले संस्करणुके पृष्ठ १८६० पर-- तढ़ुक्त कोहलेन --लिख कर दो दलोक शभ्रौर पृष्ठ १८१ पर तदुक्त चिरन्तनै. से फिर ८ इलोक तथा शभ्रगले १८२ प्ृष्ठपर फिर-- यथोक्त कोहलेन -- लिख कर एक इलोक स्पष्ट रूपमे कोहल के नामसे उद्धृत किया है। इस प्रकार नाट्यशास्त्र तथा श्रभ्निचवभारती में मिला कर झाठ स्थानोंपर कोहलके नामका उल्लेख है । घूतिल दाण्डिल्य श्र वात्स्य -- नाट्थदास्त्रके भ्रन्तिम अध्यायका जो इलोक हम ऊपर पु० ६ पर उद्धृत कर झाए हैं उसमें कोहलके साथ धरूतिल शाण्डिल्य तथा वात्स्य इन तीन श्राचार्योके नामका उत्लेख भी भरतके दलोकमें पाया जाता है। इससे प्रतीत होता है कि थे तीनों भी भरतके पुववर्ती श्राचाये हैं । कोहलाचार्यके समान बडोदा सं० पृ० २०३ दत्तिलाचायेंके इलोकको भी सभिनवगुप्तने नामग्रा हू- पूर्वक उद्धुत किया है। सद्जीत वाले श्रष्यायमें लगभग १४ बार दत्तिलके मतका उल्लेख श्रौर उसके उद्धरण प्रस्तुत किए गए हैं । इसलिए यह स्पष्ट है कि कोहलके समान दत्तिल भी नाट्य दास्त्रके भरतके पूवेवर्ती प्राचीन भ्राचायं हैं । वात्स्य श्रौर शाण्डिल्य का उल्लेख भरतसुनिके ऊपर उद्धत किए हुए झ्न्तिम श्रध्याय वाले इलोकमें किया गया है । पर झ्भिनवगुप्तने उनका कोई उद्धरण श्रादि नहीं दिया है । इसलिए यह नहीं कहा जा सकता है कि उन्होंने कोई प्रत्थ लिखा था यानही। नखकुट्ठ तथा श्रदमकुट्ट--इन दोनों नामोंकी गणना नाट्यशास्त्रके प्रथमाध्यायमें णगिनाए हुए भरतमुनिके सौ पुत्नोके नामोंपें की गई है इलोक ३३ । इनके समान ही कोहल दत्तिल दाण्डिल्यि श्रौर ब्रात्स्य की गणना भी सौ पुन्नोंके नामो्षें की गई है इलोक २६ । परस्तु जैसे कोहूल श्रौर दत्तिलके उद्धरण श्रभिनवभारती शभ्रादिमें पाए जाते हें इसी प्रकार नखकुद्ट श्र परदमकुट्ट के उद्धरण अ्रन्य ग्रत्थोंगें पाए जाते हैं । थे दोनों व्यक्ति समकालीन श्रौर एक ही स्थान रहने वाले प्रतीत होते हैं। साहित्यदप॑णुकार विदवनाथने सा० द० २९४ पृष्ठ नखकुटूट की उद्धरण दिया है । श्रौर सागरनन्दी ने नाटकलक्षणरत्नकोद नामक भ्रपने ग्रन्थमें झदमकुट्टके सद्धरण ए० ८३ ३७ २७६६ २७६७ २७७६-र७७५ दिए हैं। इससे स्पष्ट है कि ये दोनो भी नाट्यशास्त्रके प्राचीन श्राचाय हैं। ह बादरायण--भरतपुत्रोकी सुचीमें ३२ वें इलोकमें बादरायण नाम भी झाया है । सॉचिशनस्दी ने अपने नाट्यलक्षणरत्नकोद ग्रन्थमें १६९२-१६ ६४ तथा २७७००२७७१ दो स्थानों




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