हिंदी रचना और उसके अंग | 1106 Hindi-rachana Or Uske Ang 1945
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13.71 MB
कुल पष्ठ :
368
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १०.)
दू , घर, घोड़ा, लडका, श्रजगर । एक या अधिक अच्तरों के मेल से कुछ
ध्वनियोँ ऐसी बनती हैं जिनका स्वयं तो कोई विशेष श्रथे नहीं ,होता ;
पर वे जब श्रन्य शब्दों के साथ जोड़ी जाती हैं तत्र साथक हो जाती हैं।
. इन्हे 'शब्दांश” कहते हैं । ता, पन, वाला श्राठि ऐसी ही ध्वनियाँ हैं ।
हिन्दी में अन्य कई भाषाओओ' के शब्द काम. में थ्ाते हैं । मुख्यतः
ये दब्द ६ प्रकार के होते हैं--
१ तत्सम--ऐसे शब्द जो सीधे संस्कृत से हमारी भाषा में ब्राए
हैं । श्राज कल हमारी भाषा में ऐसे शब्दो' का प्रयोग दिन-दिन बढ़ता
जारदा दे। वत्स, काय, श्रक्तर, रात्रि, अग्नि, माता श्रादि तत्सम
दाब्द हैं | हा ः
२ अधे तत्सम--सस्कृत के जिन शब्दों का रूप बिगढ़ गया है ;
जैसे बच्छु, कारज, श्रच्छुर, रात, श्रगिन ।
३ तदूभव--जो शब्द सीधे प्राकृत से आए हैं या आआकृत से होते
इुए सस्कृत से निकले हैं; जैसे त्रच्चा, काज, अक्खर, झ्राखर, आग, माँ |
४ देशज--जिन शब्दों की व्युत्पत्ति का ठीक-ठीक पता नहीं -
चलता ; जैसे तेंदुद्रा, खिड़की, ठेस |
४ अनजुकरण या ध्वनिवाचक--जो गब्द किसी पदार्थ की ठीक या
कल्पित ध्वनि पर बने हैं ; जैसे खटखटाना, चटचटाना, फड़फड़ाना |
६ विदेशज--श्ररवी, फारसी या श्रंगरेजी आदि विदेशी भाषाओं
के जो शब्द हिन्दी में प्रचलित हो गए. हैं , जैसे रेख, कोट, लालटेन ।
द शब्दों के भेद
झयं के श्नुसार शब्दों के दो मेट होते हैं-(१) सार्थक शब्द--
जिन दाब्दो का कुछ अथें समक में आता हो । जैसे गाय, मा, घोड़ा,
रादल । ( २) निरथेक शब्द-जिन शब्दों का कोई श्र्थ नहीं होता ;
बादल की गरज, आँय-बॉय |
श्रपना श्रथ प्रकट करने के लिए. दाब्द के रूप में जो परिवर्तन होता
है उसे 'रूपान्तर' कहते हैं ; जैसे लडका, लड़के, लड़कों । रुपान्तर के
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