हिंदी रचना और उसके अंग | 1106 Hindi-rachana Or Uske Ang 1945

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1106  Hindi-rachana Or Uske Ang  1945 by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १०.) दू , घर, घोड़ा, लडका, श्रजगर । एक या अधिक अच्तरों के मेल से कुछ ध्वनियोँ ऐसी बनती हैं जिनका स्वयं तो कोई विशेष श्रथे नहीं ,होता ; पर वे जब श्रन्य शब्दों के साथ जोड़ी जाती हैं तत्र साथक हो जाती हैं। . इन्हे 'शब्दांश” कहते हैं । ता, पन, वाला श्राठि ऐसी ही ध्वनियाँ हैं । हिन्दी में अन्य कई भाषाओओ' के शब्द काम. में थ्ाते हैं । मुख्यतः ये दब्द ६ प्रकार के होते हैं-- १ तत्सम--ऐसे शब्द जो सीधे संस्कृत से हमारी भाषा में ब्राए हैं । श्राज कल हमारी भाषा में ऐसे शब्दो' का प्रयोग दिन-दिन बढ़ता जारदा दे। वत्स, काय, श्रक्तर, रात्रि, अग्नि, माता श्रादि तत्सम दाब्द हैं | हा ः २ अधे तत्सम--सस्कृत के जिन शब्दों का रूप बिगढ़ गया है ; जैसे बच्छु, कारज, श्रच्छुर, रात, श्रगिन । ३ तदूभव--जो शब्द सीधे प्राकृत से आए हैं या आआकृत से होते इुए सस्कृत से निकले हैं; जैसे त्रच्चा, काज, अक्खर, झ्राखर, आग, माँ | ४ देशज--जिन शब्दों की व्युत्पत्ति का ठीक-ठीक पता नहीं - चलता ; जैसे तेंदुद्रा, खिड़की, ठेस | ४ अनजुकरण या ध्वनिवाचक--जो गब्द किसी पदार्थ की ठीक या कल्पित ध्वनि पर बने हैं ; जैसे खटखटाना, चटचटाना, फड़फड़ाना | ६ विदेशज--श्ररवी, फारसी या श्रंगरेजी आदि विदेशी भाषाओं के जो शब्द हिन्दी में प्रचलित हो गए. हैं , जैसे रेख, कोट, लालटेन । द शब्दों के भेद झयं के श्नुसार शब्दों के दो मेट होते हैं-(१) सार्थक शब्द-- जिन दाब्दो का कुछ अथें समक में आता हो । जैसे गाय, मा, घोड़ा, रादल । ( २) निरथेक शब्द-जिन शब्दों का कोई श्र्थ नहीं होता ; बादल की गरज, आँय-बॉय | श्रपना श्रथ प्रकट करने के लिए. दाब्द के रूप में जो परिवर्तन होता है उसे 'रूपान्तर' कहते हैं ; जैसे लडका, लड़के, लड़कों । रुपान्तर के




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