मुद्राराक्षस | Mudrarakshas

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Mudrarakshas by भारतेन्दु हरिचन्द्र - Bharatendru Harichandra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१०. बाहर व तक इसके पुत्रों के दाथ में रद कर मगघ राज्य मौर्यों के दाथ में बला गया | ग्रीक लेखकों के अनुसार उस समय के नन्दवंशीय राजा के कुस्वभाव के कारण हिंदू प्रजा में झसंतोष फैला हुश्रा था । दूसरा कारण उनका शूदजात दोना था । नन्दबंश वाले चत्रियों के नाशक थे इससे उस समय के छत्रिय राजे भी उनसे विमुव थे | जिस समय चाणक्य नन्दी से बिगड़ खड़ा हुआ उसी समय के श्रासराध सिकंदर भारत में श्राया श्रौर चला गया। समय चन्द्रयुत पंजाब में चक्कर लगा रहा या। सिकंदर की स्ृत्यु पर पंजाब के र.जाश्रों ने यवनों के के विरुद्ध विद्रोद किया श्रौर चन्द्रगुसत इन बलवाइयों का मुखिया बन बैठा | इसी समय चाणक्य ने चन्द्रगुप्त को मन्दों के विस उभाढ़ा श्रौर पंजाब के राजाओं की सद्दायता से तथा श्रांतरिक पड्चक द्वारा मराघ राज्य पर श्रधिकार कर चंद्रगु्त को प्रथम मौय सम्राट बनाया । चंद्रगु्त ने झधिकार-प्रातति के श्रनसार कोशल तक श्रपना राज्य बढ़ाया । वि० सँं० २४० पू० में औक गजा सिल्यूकस निकेटोर सिकंदर के विजय किए हुए प्रांतों पर श्रधिकार करने के बाद मारतवष में झाया पर चंद्रगुस से परास्त दोकर लोट गया । इस पराजय के उपलब्ध में सिल्युकस को झपनी कम्या चंद्रगु्त से ब्याइनी पड़ी और काबुल कंघार हिरात तथा दिलूचिस्तान के प्रदेश मी उसे सौंपने पड़े । चंद्रगुत्त ने भी झपने श्वशुर को पाँच सौ हाथी प्रदान कर सम्मानित किया । इतके उपपत छिल्युकस ने मेगार्थनीज क. श्रपना राजदूत बनाकर चंद्रगुप्त के दरबार में रखा । इस प्रकार चौथीस व निष्कंटक र ज्य कर पचास वर्ष की श्रवस्था में सं० २४१ के निकट चड्रगुप्त की मृत्यु हुई इसके झ्नन्तर इसके पुत्र बिं दुसार इतके ने फथौस वर्ष राज्य किया झौरर तब पस्म प्रसिद्ध श्रशोक भारत रघ का सम्राट हुन्रा । . का स्थान संस्कृत साहित्य में बहुत ऊँचा है श्रौर अन्य नाध्कों से भिन्न ऐतिहािक तथा राजन ति-दिषयक होने के कारण इसका कथावस्तु पुराण 4 स६मारत 1 है नहीं लिया गया है और न कोरी करोल-कहाना दी




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