स्वपन लोक | 1133 Svapan-lok
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5.3 MB
कुल पष्ठ :
152
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ११ )
हूँ। समय झादि का किसी तरह का कोई चन्थन नहीं है ।
हृदय की चाह मिटाकर खुब मनमाना प्राइतिक सौन्दर्य देखते
देखते चला जा रहा हूँ । रेलगाड़ी की तरह आकाश से टूटे
हुए तारे के समान वेग से दौड़कर मांगे के प्राकृतिक दृश्यों
का झवलोकन करने तथा उनका आनन्द लूटने में व्याघात
नहीं उत्पन्न करती । “यथाविधो मे सनसेा5सिलाष: प्रवतते
पश्य तथा विमानमू” । (जिस तरह मेरे मन की असिलावषा हैं
वैसे ही यह विमान भी! चल रहा है)। यह मानों मनारथ के
अनुसार चलनेबाला ठीक पुष्पक रथ है ।
यदि कहीं आप इस रथ पर युगल मूर्ति से विराजमान
हों, तब वह सानो मणिकाब्वन संयेाग है। स्थान के विस्तार,
शरीर के 'झवस्थान और यान की गति आदि तीनों के झपूव
सम्सिश्रण से इस स्थल में अनन्त अविच्छिन्न मिलन
अवश्यम्सावी हे । यहाँ मान, असिमान, विराग तथा विरह्द का
कोई अवसर ही नहीं है। भीरुस्वभावा सीता देवी द्रडक
वन में मेघ की गजना सुनकर रामचल्द्र के प्रगाढृ आरलिहन में
आबद्ध हो गई थीं। वह “कस्पोत्तरं भीर तबापगूढम” चह
“निविड़ बस्ध परिचय” प्रेसिक रासचन्द्र बहुत दिनों तक नहीं
भूल सके। हम भारतीय कापुरुष होते हैं। सेघ का गज
श्रवण करने पर स्वयं ही भयभीत होकर मूर्छित दो पढ़ते हैं,
तव भला क्या हम प्रिया के सुखस्पशं का अनुभव कर सकेंगे?
किन्तु बैलगाड़ी जिस समय उवड़-खावढ़ ज़मीन में उँचे
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