आँका-बांका | Aanka-banka

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Aanka-banka by प्रबोध कुमार सान्याल - Prabodh Kumar sanyal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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११ है उसका स्वभाव घर्म । सबसे अधिक सस्य मानव है उससे श्रेष्ठ कुछ भी नहीं इस उक्कि का सब लोग विकृत श्रथ करते श्राये हैं । बहुत से बड़े-बड़े साहित्यिक सभाओं मैं गला फाइ-फाइकर इस नियम का श्राद्ध करते रहते हैं। इस नियम को कण्ठस्थ रहने से सस्ते समापतित्व की चकाचोंध से भोली जनता की वाइवाही लूटी जा सकती है । साम्यवाद से व्ारंभ करके अतीन्द्रिय साहित्य की व्याख्या तक इसी की शतरंज का खेछ चलता है जिससे सानव सत्य है इस बात के कहते ही श्रोताओं के खून सेंगर्मी पैंदा की जा सके । वह मानव जो रक्तमांस का बना मानव है घनी लोगों द्वारा उत्पीड़ित मानव है काम न पाने से बेकार सानव है साइय की बूठोँ की ठोकर खाया मानवै है--इस तरह सोच सकने पर ही माड़े का टू समापतिं विशेष श्रानन्द पाता है। पर मानव और मानव का प्राणुघर्म एक नहीं है यह बात बुद्धिमान लोग कभी सोचेंगे ? एक स्पू मानव कितनी ही श्रात्सविरोधी बत्तियों का एक समष्टि है यह बात वे कब सममेंगे ? जो लोग सर्वत्यागी परम सत्याश्रयी शष्टनेता हैं उन्हें भी निकलने की गु जायश रखकर श्रख़बारों में जो विवस्णु प्रकाशित होते हैं उस बात को वे सोच नहीं सकते वे यह नहीं सोच सकते कि जो श्रादमी सब लोगों का श्रद्धाभाजन हिन्दू सभा का पंडा है जिसको हम सनातनी हिन्दू कहते हैं--बहद भी सुबह शाम अंत्रेजी-सुसल्मानी खाना खाते हैं । इसके सिवा कंकर के ही दूर के रिश्ते के मामा नारी-रक्षिणी समिति के एक उत्साही कायकर्ता हैं बह भी विशेष स्वतंत्र रूप से एक पडता बालिका के प्रति हर रात प्रणय ज्ञापन करते हैं--इसे प्रायः सभी जानते हैं । जो नागा संन्यासी हैं वद्द भी श्रापस मैं गद्दी दखल करने के लिये खून-खराबी करते रहते हैं । सबसे अधिक मानव सत्य है? कहनेवालों की परस्त्री के पति श्रासक्ति तो सब लोगों को मालूम है । उनके इस सहज स्नभाव घर्म मैं जिन लोगों ने बाधा पहुँचाना चाही उन लोगें के लिये ही यह बात कही गयी है । सर्वसाधारण मैं श्रनेक लोग नानते हैं कम से कम जानने का




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