नारायण चिकित्सा | Narayan Chikitsa

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Narayan Chikitsa by स्वामी नारायण - Swami Narayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ११.) ध्यान, योग, यज्ञ, शम, दम इत्यादि सब इसी शरीर द्वारा सिंद्ध किये जाते हैं, जब॒ तक यह नीरोग रहता है सब श्रकार के पुरुपाथ करने को समथ रहता है । खाना, पीना, सोना, चलना, फिरना, नाच, रंग, तसाशे, राग, तान, गाने; बजाने सब सुद्दाचने लगते हैं छोर स्ों में आनन्द का भान होने लगता है पर जिस समय यह रोगी हो जाता है तो कोई वात अच्छी नह्दीं लगती, इन्द्र का थी राज अच्छा नहीं लगता, फिर तो यह शरीर ठीक २ नरक लान पड़ता हे, लोकिक, पार लोकिक किसी प्रकार का साघन इससे नहीं चन पड़ता । घम अथ कास मोक्षाणां मूल मुक्त कलेवरम्‌ ॥। थीत्‌--धर्म, अधें काम ओर मोक्ष चारों पदार्थों के साधन का मूल शरीर हे इसलिए इसको अवश्य लीरोग रखना चाहिये तप आर स्वाध्याय इत्यादि धर्मों को. ब्रह्मचयं न्नत को छोर आयु को हरने वाले रोग सर्वत्र जहां तहां फल हुए हैं, ये रोग शरीर के दुर्बत करने वाले चल के चाय करने वाल, देह की चंप्रा हरसे वाले इन्द्रियों की शक्ति के क्षय करने चाल, सब में पीड़ा करने चाले धर्म, 'छार्थ, काम शोर मोक्ष में चलात्कार उपद्रय करने घाले आर शीघ्र प्राण के हरने वाले जब तऊ शरीर में प्रवेश किये देखे जाते हैं तब्र तक प्राणियों को कल्याण कहां हू धान नहीं है । प्पब चुद्धिमाल पाठक चिचार करें कि सब्र रोगों के उत्पन्न होने का मुख्य कारण क्या है ? थोड़ा हीं विचारने के पश्चात सच बाते ठोक २ प्रगट हो जावेगी । यह कफ, पिन सर घायु के संयोग से स्थित हे, जय तक ये तीनों ठीक ठीक अपने २ स्थान पर अपने ०. प्रमाग् फे छनुसार छापने « यार्य फो सर रहें दि और ठीक समय पर हो शरीर फी सुर्य से प्रयेश फर फो राम न से इधिस रीति से परँँया डेने




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