समाधी तंत्र और इश्तोपदेश | Samadhi Tantra Aur Ishtopadesh

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Samadhi Tantra Aur Ishtopadesh by देवनन्दी - Devnandi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१२ रण विद्वत्ताके घनी थे सेवा-परायणो मे श्रम गण्य थे महान दाद निक थे श्रद्धितीय वैयाकरण थे श्रपूर्व वैद्य थे घुरघर कवि थे वहुत बडे तपस्वी थे सातिशय योगी थे श्रौर पूज्य महात्मा थे । इसीसे कर्णाटकके प्राय सभी कवियोने--ईसा- की पवीं €वी १०वी शताड्दियोंकि विद्वानोने-श्रपने-ब्रपने ग्रथोमे बड़ी श्रद्धा- भक्तिके साथ आपका स्मरण किया है श्रौर श्रापकी मुक्तकठसे प्रशसा की है। जीवन-घटनाएं झापके जीवनकी श्रनेक घटनाएँ हैं-जैसेकि १ विदेहगमन २ घोरतपदचर्यादिके कारण शाँखो की ज्योतिका नष्ट हो जाना तथा शान्त्यष्टक के एकनिष्ठा एव एकाग्रतापूवक पाठसे उसकी पुन सम्प्राप्ति ३ देवताझ्रोसे चरणोका पूजा जाना ४ श्रौषधि ऋद्धि की उपलब्धि ४ श्रौर पादस्पृष्ट जलके प्रभावसे लोहेका सुवरणं मे परिणत हो जाना श्रथवा उस लोहेसे सुवर्णका विक्षेष लाभ प्राप्त होना इन पर विशेष विचार करने तथा ऐतिहासिक प्रकाश डालनेका इस समय श्रवसर नही है । ये सब विशेष ऊहापोहके लिये यथेष्ट समय श्रौर सामग्रीकी श्रपेक्षा रखती हैं । परन्तु इनमे प्रसभवता कुछ भी नही है--महायोगियोंके लिए ये सब कुछ शवय हैं । जब तक कोई स्पष्ट बाधक प्रमाण उपस्थित न हो तव तक-- सर्वत्र बाघकाभावादस्तुव्यवस्थित की नीतिके श्रनुसार इन्हे माना जासकता है। पितृकुल प्र गुरुकुल पितृकुल श्रौर गुरुकुलके विचारोको भी इस समय छोडा जाता है । हाँ इतना ज़रूर कहदेना होगा कि श्राप मुल सघान्तर्गत नन्दिसघके प्रधान श्राचार्य थे स्वामी समन्तभद्रके वाद हुए हैं--श्रवणवेल्गोलके दिलालेखो न० ४० १०८ मे समन्तभद्रके उल्लेखानन्तर तत पद देकर श्रापका उल्लेख किया गया है श्रौर जयह शान्त्यष्टक न स्नेहाच्छरण प्रयान्ति भगवन्‌ इत्यादि पद्यसे प्रारम्भ होता है श्रौर दशभक्ति श्रादिके साथ प्रकाशित भी हो चुका है । इसके श्रस्तिम श्राठवें पद्यमे मम भावितकस्य च विभो दृष्टि प्रसन्ना कुरु ऐसा दचर्थक वाक्य भी पाया जाता है जो दृष्टि-प्रस्नताकी पाथेना को लिये हुए है ।




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