चरित्र शिक्षण | Charitr-shikshan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १३ ) '. मैं अपनी चूतियोंको संयत करनेमें कहांतक सफल रहा? लोभवश चोरी या कामनावश क्रोध तो नहीं किया? अपने स्वाये या दूसरोंको हानि पहु'चानिकी इच्छासे झूठ तो नहीं योला ? निज आचरण या परनिन्दा-द्वारा अन्य सामने कोई वुरा उदाहरण तो नहीं उपस्थित किया! अपने शिक्षकों या मातार्नपताकी आज्ञाओंका टीक टीक पालन तो किया ? उनकी किसी कड़ो आधाका पालन .फरते समय मनमें या उनके पीठ-पीछे हमने उनकी नित्दा तो नहीं की ! उनका था अन्य बोंका सम्मान तो किया ! अपनी पोशाक, सुन्दरता या. सुखं-सामग्रीके कारण किसी साथीफो छोटा तो नहीं समभका या अभिमान तो नहीं किया ! प्रार्थना, पढ़ाई या क्लासके कामोंमें सुस्ती तों नहीं की! इतना विचार फर ेनेप्रर शान्त-चिस हो अपने अपराधों के लिये क्षमा-याचना और भविष्यकें लिये कत्तघ्य- ' पालनकी शमताके लिये प्राथना करनी चाहिये। हमार प्रत्येक दिनका आरम्भ और अन्त परमात्मा के साथ दोना चाहिये । जो लोग अपनी कार्य्यावलीको जाँच प्रंति दिन नहीं करते उत्हे' अपने दैनिक लाभालाभका पता नहीं लग सकता और इसका पता लगे दिनां हमारी सफलता अधिकांशमें अनिश्चित रहती है । दैनिक दिनचर्य्याका दिसाव न .रखनेवाछा




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