पवयण सारो | Pavyansaro

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Pavyansaro by श्रेयस जैन - Shreyas jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१३ ७ अनुकम्पा सम्यग्दशन का लक्षण है। स्वय श्री कुदक्द आचार्य ने बोधपाहुड मे बतलाया है कि धर्म विशुद्ध अर्थाद्‌ निर्मल होता है । भावपाहुड मे मुनि को छह काय के जीवों की दया करने का उपदेश दिया है तथा जो मुनि करुणाभाव से सयुक्त है वह समस्त पापों का नाश करता है ऐसा कहा है शीलपाहुड मे कहा है कि जीव-दया शील का परिवार है और रयणसार मे दया को प्रशस्तध्म बतलाया है। फिर वे ही श्री कृदकूद आचार्य प्रवचनसार गाथा ८५ मे करुणाभाव को मोह का चित्न कैसे कह सकते थे ? इस गुत्यी को सुलझाने के लिये श्री जयसेन आचार्य ने करुणाभाव की करुणा-अभाव ऐसा सस्धि विच्छेद करके यहू बतलाया कि करुणा का अभाव मोह का चिह्न है। करुणा जीव का स्वभाव है उसे कर्म जनित मानने मे विरोध आतता है किन्तु अकरुणा करुणा का अभाव सयम घाती चारित्रमोहनीयकर्म का फल चिह् है । ८ ज्ञाची और अज्ञानी से अभिप्राय प्राय. सम्यग्दृष्टि से लिया जाता है श्री जयसेन आचार्य ने गाथा २३८ में बतलाया कि जो वीतरागसमाधि में स्थित है वह आत्मज्ञानी है और जो निधिकल्पसमाधि से रहित है वह अज्ञानी है। यदि अज्ञानी का अथथे मिध्यादृष्टि लिया जाय तो मिथ्यादृष्टि के तो कर्मों की अविपाकनिर्जरा होती नही है । अत. मिध्यादृष्टि की अपेक्षा यह नहीं कहा जा सकता कि अज्ञानी जिन कर्मों को सहख्र कोटि वर्ष मे खपाता है ज्ञानी उनको क्षणमात्र मे क्षय कर देता है । यह कथन निधिकल्पसमाघि की अपेक्षा ही सम्भव है । 8 गाथा २४५४ की टीका मे बतलाया है कि गृहस्थ के निश्चयधर्म सभव नही है। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि चतुर्थ गुणस्थान में निश्चयसम्यक्त्व नही होता है । क्योकि गाथा १४४ की टीका मे वतलाया है कि निश्चयसम्यग्दर्शन वीतरागचारित्र का अविनाभावी है । १० गाथा २४५४५ में बतलाया है कि सम्यग्दृष्टि का शुभोपभोग मात्र पुण्य बंध का कारण नही है किस्तु परम्परा मोक्ष का कारण भी है । इसी प्रकार अन्य भी बहुत ऐसे स्थल है जहाँ पर श्री जयसेन आचाये ने विषयों को स्पष्ट किया है कलेवर बढ जाने के भय से उनको यहाँ पर नही दिया जा रहा है स्वाध्याय करने से वे स्थल स्वय ध्यान मे आ जावेगे । सहारनपुर ब्र० रतनचन्द मुख्तार वीरनिर्वाण दिवस सम्वतु २४८४ १--प्रशम सवेगानुकम्पास्तिक्याभिव्यक्ति लक्षण सम्थक्त्वम्‌ । धवल पु० १० पृ० ११५१ र-धम्मो दयाविसुद्धो बोधपाहुड गा० २५ ३-र छज्जीव सडायदण भावपाहुड गा० १३२ ४-- जे करुणा भावसजुत्ता ते सव्वर्दारिय खभ हणति भावपाहुड गा० १५७ प्र-- जीवदया सील्लस्स वररिवारो शीलपाहुड गाथा १६ ६-- दयाइ सद्धम्मे रयणसार गाथा ६५ ७-- करणाजीव सहावस्स कम्मजणिदत्तविरोहादो । अकरुणा कारण कम्म वत्तव्व ? ण एस दोसो सजमघादि कम्माण फलभावेण तिस्से अव्भुवगमादों । धवल १४ पृ० २६२




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