सर्प-विष चिकित्सा | Sarp-vish-chikitsa

Book Image : सर्प-विष चिकित्सा  - Sarp-vish-chikitsa

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about गिरिवरनारायण जी जैन - Girivrnarayan ji Jain

Add Infomation AboutGirivrnarayan ji Jain

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
( १३ ) सांपों की सुगन्धि और संगीत प्रियता दिल प्रसन करने वाली सुगन्धि सांपों को बहुत प्रिय द्ोती है। सुगन्धित यृक्षों के ध्यास पास साँप मस्त दोके पढ़े रहते हैं । चन्दन की सुगन्वी इन्दें इतनी धिक प्रिय है. कि उसके उक्त के चारों तरफ ये लिपटे पड़े रदते है। हां तेज गन्थ से इनका नाक सिकुड़ने लगता हैं '्मौर वहां थे टिकते भी नददीं । नाटट्रिकसिड टिंचरदाइडिन फिनाइल कार्वोलिक ऐसिंड आदि उम्रगन्व ीप- थियों के पास ये नहीं श्रात--दूरसे दी प्रणाम करके चले जाते हैं। दुर्गन्वित स्थान भी इन्हें चहुत प्रिय हाते हैं । सगन्थि की तरह संगीत भी इनके मनोरंजन की चीज है. । संगीत की मधुर ध्यनि पर साँप चुरी तरदद लट्टू, दो जाता 'झोर अपने निवास को छोड़ कर संपीत के पास झा बेठत। दै | यद देखा गया दै कि हारमोनियम सुदंग और शारंगी की मीठी तान पर सांप सुग्ध दोकर पास में आ चेठता है ।--कर्णकट्ड संगीत सांपों के लिये राचिकर नदी दोत। टोल ढमाके की आवाज से तो सांप उल्टा दूर हट जाता है । दर्वीकर--फण वाले सॉप ६: फण बाले सांपों कोदर्वी कर कहते है । इनका मुह करछली के जसा होता है इसलिये इन्हें दर्वीकर कहते हैं । दर्वीकर सांप की चाल श्रहुर्त तेज होती है. कैसे से कैसा तेज दौड़ने वाला दुश्मन




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now