वर्ग संघर्ष | Varg Sangharsh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १४ ) वोलनेवाले यंत्र ( श्ौजार ) समभे जाते थे । घातु के ौज़ारों को सूक यंत्र (016 ६०015) और सवेशियों को जिस तरह छा्धें-मूक यूत्र (3&0मं-प्रपा 6 10015) समझा जाता था, उसी तरह वेचारे गुलाम सी औजार-मात्र दी थे; उन्हें बोलने- चाला जार ( (घ11तं०8 10015 ) कहकर समाज ने उनको जो स्थान दिया था, साफ़ हो जाता है । इस तरह दम देखते हैं कि आर्थिक परिवतंन के साथ- साथ राजनीतिक परिवर्तन भी हुआ । जिस समय अजारों के विकास तथा व्यक्तिगत सम्पत्ति से स्वामी और रुलामोंवाला श्रेणी समाज पेंदा हुआ, उसी समय मुखिया राजा बन गया और क़चीलों की सम्पत्ति समाज की सम्पत्ति न होकर राज्य की मिल्कियत बन गई । क़बीते भी अपना रूप बदल कर शहर राज्य ( सं डांध€58 ) बन गये । इतिहास हमें बतलाता है कि राज्य-व्यवस्था जनता को दमन करके क्राबू में रखने का एफ जरिया है । राज्य-व्यवस्था उसी समय क्रायम दोती है, जब शोषक-वगं की ओर से शोपितों पर शासन करना ज़रूरी दो जाता है, जिससे शोषितों की मेहनत का फल निर्विरोध शोषकों को मिल सके | लेनिन ने भी ठीक यहीं कहा है । ं गुलाम प्रघान समाज प्रीस शर रोम में अपने विकास की पराकाष्टा पर पहुँच गया । अनंगिनत . गुल्लामों की हड्डियों पर उस समाज का विकास हुआ । चूँकि (७1४ 81659 आपस




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