वर्ग संघर्ष | Varg Sangharsh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4.61 MB
कुल पष्ठ :
112
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १४ )
वोलनेवाले यंत्र ( श्ौजार ) समभे जाते थे । घातु के
ौज़ारों को सूक यंत्र (016 ६०015) और सवेशियों को जिस
तरह छा्धें-मूक यूत्र (3&0मं-प्रपा 6 10015) समझा जाता था,
उसी तरह वेचारे गुलाम सी औजार-मात्र दी थे; उन्हें बोलने-
चाला जार ( (घ11तं०8 10015 ) कहकर समाज ने उनको
जो स्थान दिया था, साफ़ हो जाता है ।
इस तरह दम देखते हैं कि आर्थिक परिवतंन के साथ-
साथ राजनीतिक परिवर्तन भी हुआ । जिस समय अजारों के
विकास तथा व्यक्तिगत सम्पत्ति से स्वामी और रुलामोंवाला
श्रेणी समाज पेंदा हुआ, उसी समय मुखिया राजा बन
गया और क़चीलों की सम्पत्ति समाज की सम्पत्ति न होकर
राज्य की मिल्कियत बन गई । क़बीते भी अपना रूप बदल
कर शहर राज्य ( सं डांध€58 ) बन गये । इतिहास हमें
बतलाता है कि राज्य-व्यवस्था जनता को दमन करके क्राबू में
रखने का एफ जरिया है । राज्य-व्यवस्था उसी समय क्रायम
दोती है, जब शोषक-वगं की ओर से शोपितों पर शासन
करना ज़रूरी दो जाता है, जिससे शोषितों की मेहनत का
फल निर्विरोध शोषकों को मिल सके | लेनिन ने भी ठीक
यहीं कहा है । ं
गुलाम प्रघान समाज प्रीस शर रोम में अपने विकास की
पराकाष्टा पर पहुँच गया । अनंगिनत . गुल्लामों की हड्डियों पर
उस समाज का विकास हुआ । चूँकि (७1४ 81659 आपस
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