व्यवहार भानु | Vyavahar Bhanu

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१४ | व्यवहार भानुः इस प्रकार माचात करावें कि एक के जानने से हजारइ पदाध यथावत्‌ जानते जांय अपने आत्मा में इस बात का ध्यान रक्‍्ख कि जिस २ प्रकार से संसार में विद्या घर्मांचरण की वढ़ती और मेरे पढ़ाये मनप्य अविद्वान और कुशिक्षित होफर मेरी मिन्‍्दा के कारण न डा जांय कि में ही विद्या के रोकने और अविद्या की वद्ि का निर्मित्त न गिना जाऊ सा न है कि सवात्मा परमेश्वर के गुण कम स्वभाव से मेरे गुण कम स्वभाव विश दाने से मुम को महादु ख भोागना है परम धन्य वे मनुष्य हैं कि जा अपने आत्मा के समन सुख में सुख और दुश्ख में दः तर अन्य मनुप्यों का जान कर घामिकता को कदापि नहीं छाइ़ते इत्यादि उत्तम व्यवहार आदाय् लाग नित्य करते जांग विद्यार्थी लोग भी जिन कमा से आचाथ की प्रसन्नता दती जाय वैत्ते कमें करें ज्म मे उम का आत्मा संतुष्ट दो- कर चाहे कि ये नाग विद्या में युक्त हो कर सदा प्रमन रहें रात दिन विद्या हो के विचार में लग कर एक दूसरे के साध प्रेम से परस्पर विद्या के। प्रट्राते जावें । जहां विषय वा अधम की चचा भी होती डे वहां कभी खड़े भी न रहें । जहां २ विद्यादि व्यवहार और घम का व्याख्यान हाता है वह से अलग कभी न रहें माजन छादन ऐसी रोति से करे कि जिस से कभी राग वीयहानि वा प्रमाद न बढ़े । जा बद्धि के नाश करने हारे नशा के पदाथे दा उन की यृहण कभी न करें किन्तु जा २ ज्ञान बढ़ाने और रोग नाश करने हारे पद।थ डॉ उन्हों का सेवन सदा किया करें । नित्यप्रीत परमेश्वर का ध्यान यागाभ्याम बद्धि का बढ़ाना सत्य धर्म की निष्ठा और अधम का स्वेत्रा त्याग करते रहें । जा २ पढ़ने में विघरूप कमें हां उन की द्वाड़ कर एश विद्या को प्राप्त करे इत्यादि दानें के गुण कमें हैं ॥ प्र० सत्य और असत्य का निश्चय किस प्रकार से होता है व्वाकि जिस को एक सत्य कहता है टुसरा उसी की मिथ्या बतलाता कय्द कल दे उस का निणय करने में क्या २ निश्चित साधन छु॥




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