मतवारी मीरा | Matwari Meera

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Matwari Meera by प्रभुदुत्त जी - Prabhudutt JI

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१५ दे हरि चिन्तन वितरण चूण चिन्तारमाण निकर चरण नख किरण लालाशुक चिन्तामशिमदं तनुते गिरिघर नागर. सरबस रमरणा । चरण नखमिहिरदारितमसिज तिमिराममारण मीरा ॥| हुए घट कण ० 0०ए810प506055 211 एप तपडा घट एा2प्र 96 200 2०510507 9010 26. 968860 ६०. 0 कर ताक 8 औए घाए 8. पाए 006 0 परत धन 2.8 250 2.58 ४ ४1085 ऐपप फाभ5 10 29016 घट 8-. एप 1 एटा १85 00700 10 8620 ०00 620 फिंए8 85. 5 रि20प्ानए 211. 577 28 पट एज ०5 घातते 1550 25 पु हार 1 58पसार& कृष्ण-बांघमय जगत्‌ में समस्त घूल-कण-वे ही कहीं भी हों ओर कैसी भी स्थिति के अधिकारी हों-राधाकष्ण के आनन्द का समानता से उपभोग करते है। चम्पकलता ने जो राधाकृष्ण की अष्ट सखियों में से एक थी और जिनका काम चैँवर डलाना था कृष्ण के प्रेम को प्रथ्वी पर फैलाने के लिये जन्म लिया था पहले पद्मावती श्री जयदेवजी की स्त्री के रूप में और फिर चिन्तामणि लीलाशुक की स्त्री के रूप में और अन्तिम बार सीरा के रूप में । उस बहिन के मुख से संस्कृत में मीराबाइ की स्तुति के ये श्लोक सुनकर में अवाक रह गया । आज तक मैने संस्कृत में. मीराबाइ की स्तुति का एक भी श्लोक नहीं सुना था। मेरी बड़ी उत्कण्ठा बढ़ी मैंने पूछा-- ये श्लोक किसने बनाये ।




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