रत्न - परिचय | Ratna-parichay
श्रेणी : ज्योतिष / Astrology
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6.08 MB
कुल पष्ठ :
162
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about हरीशचन्द्र विधालंकर - Harishchandra Vidyalankar
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१५ है--्ौर ये मिलाकर तथा श्रलग-श्रलग काम करती हैं श्रौर कहीं-कही तो इव्य केवल श्रपने प्रसाव झर्क्ति से ही कार्य करता दिखायी पड़ता है । इस पुस्तक में प्रत्येक रत्न के वर्णन में इन शक्तियों का उल्लेख उचित स्थान पर किया गया है । पद््भुषण पं ० सुर्यनारायण व्यास की सम्सति--रंनों के धारण करने के प्रभावों के सम्बन्ध में लिखते हुए प्रसिद्ध ज्योतिषी पदमभूपण श्री सू्यनारायण व्यास ने रत्नों की वैज्ञानिक उपयोगिता श्रौर परिचय गीषेक लेख के श्रन्त सें साररूप में निम्नलिखित झब्द लिखे हैं-- विभिनन्न रत्नों के विभिन्न प्रयोग और उनके परिणामों की गाथा ग्रत्यन्त मनोरजक है । हमारा अपना तो यह विद्वास है कि जिस ग्रह के प्रभाव से जो रत्न अथवा धातु प्रभावित है उसका प्रयोग उस ग्रह के विकृत समय मे विचार-परीक्षण पक किया जाये तो श्राइचयंजनक परिणामकारी सिद्ध होता है । अवश्य ही उसका प्रयोग श्रौर परीक्षण दरीर की प्रकृति के ग्रहजन्य प्रभाव के न्यूनाधिक स्वरूप में निर्माण के निर्णय के परचात्ू ही रत्नघातु के तत्त्व-सन्तुलन-दुष्टि से किया जाना ही उपयोगी हो सकता है । इसमें सूकष्मावलोकन क्षमता की श्रपेक्षा है । रत्नपरीक्षा जयपुर से साभार कोरा घ्न्घविर्वास वहुम झथवा बहुकावा ?--नहीं श्राज कन के हर इस वात को कोरा श्रन्घविश्वास ही मानते हूँ कि रत्नों में कोई देवी होती है--वे कहते है कि जँसे होशियार जादूगर तरह-तरह के खेल दिखाकर लोगों को वहकाते है--ऐसे ही रत्नों में किसी प्रकार की देवी दक्ति होने का विश्वास निरा वहम है गौर मनुष्य चतुर लोगों के बहकाने में श्राकर ऐसा समभने लगता हू | परन्तु इतिहास की इस सच्चाई से कोई इन्कार नहीं
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