संक्षिप्त पद्मावत | 1170 Sanshipt Padmavat 1936
श्रेणी : काव्य / Poetry
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6.75 MB
कुल पष्ठ :
218
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ १५
की कया बात पूछती हो ? उनकी बराबरी संसार मे कोई
हीं कर सकता ।”. यह सुनकर नागमती बड़ी रुष्ट हुई।
उसने शुक को मार डालने की आज्ञा दी । धाय ने शुक
को छिपाकर रानी से कहा कि वह मार डाला गया ।
राजा रतनसेन जब श्राखेट से लौटा हे उसने शुक की
की । उसने नागमती से कहा--''या ता शुक का ला या
स्वयं अपनी ज्ञान दे ।” नागमती बड़े संकट में पड़ी । अंत
मे धाय ने शुक ला दिया तब राजा प्रसन्न हुआ । शुक के
मिलने पर राजा ने उससे सच्ची बात पूछी । उसने पदमावती
के रूप-गुण की चर्चा की । वह उस पर मुग्ध हो गया । लोगों
के लाख समभाने पर भी उसने निश्चय किया कि पद्मावती
को अवश्य अपनाउँगा । वह योगी होकर, अपने साथियों
को हे, शुक को आगे कर, सिंघल द्वीप की ओर चल पड़ा ।
माग मे अनेक कष्टों को भोलकर वह समुद्र-तट पर पहुँचा श्रार
'गज़पति की सहायता से उसने बोहित लेकर समुद्र पार करने
का निश्चय किया । क्षार, खीर, दधि, उदधि, सुरा,
किला श्रौीर मानसरावर आदि सात समुद्रो को पार करता हुआ
वह सिघल द्वीप में पहुँचा । वहाँ पर महादेव का एक मंदिर
था, जहाँ रतनंसेन अपने साथियों के साथ बैठकर तप
करने लगा । शुक को उसने पदमावती के पास भेज दिया |
शुक ने जाते समय राजा से कहा कि वसंत पंचमी को पदमा-
वत्ती यहाँ पूजा करने आवेगी तब आपसे भेंट होगी ।
द्
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