संक्षिप्त पद्मावत | 1170 Sanshipt Padmavat 1936

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ १५ की कया बात पूछती हो ? उनकी बराबरी संसार मे कोई हीं कर सकता ।”. यह सुनकर नागमती बड़ी रुष्ट हुई। उसने शुक को मार डालने की आज्ञा दी । धाय ने शुक को छिपाकर रानी से कहा कि वह मार डाला गया । राजा रतनसेन जब श्राखेट से लौटा हे उसने शुक की की । उसने नागमती से कहा--''या ता शुक का ला या स्वयं अपनी ज्ञान दे ।” नागमती बड़े संकट में पड़ी । अंत मे धाय ने शुक ला दिया तब राजा प्रसन्न हुआ । शुक के मिलने पर राजा ने उससे सच्ची बात पूछी । उसने पदमावती के रूप-गुण की चर्चा की । वह उस पर मुग्ध हो गया । लोगों के लाख समभाने पर भी उसने निश्चय किया कि पद्मावती को अवश्य अपनाउँगा । वह योगी होकर, अपने साथियों को हे, शुक को आगे कर, सिंघल द्वीप की ओर चल पड़ा । माग मे अनेक कष्टों को भोलकर वह समुद्र-तट पर पहुँचा श्रार 'गज़पति की सहायता से उसने बोहित लेकर समुद्र पार करने का निश्चय किया । क्षार, खीर, दधि, उदधि, सुरा, किला श्रौीर मानसरावर आदि सात समुद्रो को पार करता हुआ वह सिघल द्वीप में पहुँचा । वहाँ पर महादेव का एक मंदिर था, जहाँ रतनंसेन अपने साथियों के साथ बैठकर तप करने लगा । शुक को उसने पदमावती के पास भेज दिया | शुक ने जाते समय राजा से कहा कि वसंत पंचमी को पदमा- वत्ती यहाँ पूजा करने आवेगी तब आपसे भेंट होगी । द्




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