हंस कलाधर | Hansh Kaladhar

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Hansh Kaladhar by डॉ शम्भूनाथ सिंह - Dr. Shambhunath Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१६. | व्नल-दमयन्ती का नव यौवन रुकने वाला फिर कह्टीं भला जीवन के अम्बर से होकर आशा-पथ से उस पार चला | जीवन-रस का आधार चला गया अब रस की प्याली किससे मॉ्गे-- यौवन आकर फिर चला गया तन-भोगों की लेकर लाली आशा कर मलती खड़ी रही किससे माँग रस की प्याली ? नल और दमयन्ती दोनों प्रात काल उपवन में टहुल रहे थे । पतझड़ का समय था । दोनों जीवन के पतझड में बाहरी पतझड़ का राग मिला ही रहे थे तब तक हपराज अपने दल के साथ आकाश- ग॑ से उपवन में आ पहुँचा । यथोचित सत्कार के परचातु पत्रा- सनों पर हंसों की सभा बैठी । रानी के संक्रेताबुसार और स्वकीग अन्तरोद्भूत लंकाओं के आधार पर राजा ने प्रश्न रखना प्रारस्भ किया । यही समाधान-स्वरूप हंसराज का प्रवचन पॉच कलाओ में विभक्त है । हंस का एक अथ नोर-क्षीर-विवेकी संसार के कद म-कलुष से मायाहीन तत्त्वदर्शी भी होता है। विरक्त जानी त्यागी और ममताजयी महापुरुषों को इसी कारण परम हंस कहा जाता है। इसी कारण इस पंच कलात्मक हुंस-प्रदीप में ज्ञान दाशं निक चिन्तन संसार की असारता और जीवन के चरम लक्ष्य का विवरण दिया गया है। यहाँ कवि के व्यक्तिगत चिन्तन तथा उसकी बिवेक- हृष्टि का पता चलता है। कमें-ज्ञान तथा उपासना आदि सभी ध्याह्मिक मार्गों का दिग्दर्शन समुचित रूप में सिलता है । फिर भी चरम गन्तव्य सबका एक ही है । सभी का एक परम उस तक चाहे जंसे हो लें। उस परम ऐक्य को धारा में-- समुचित चाहे जैसे बह ले ॥२३॥ सम्पूण हुंस-प्रदीप अपने में अनूठा है जिसमें जीवन की अ्रमात्मक शंकाओं का समाधान मिल जाता है। यह पंच कला- र्मक हसराज का प्रवचन सचमुच ही हंस का प्रवचन है । इसकी




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